एक शिल्पकार ने बड़े मनोयोग और तन्मयता से महिला की प्रतिमा को गढ़ा। इस दौरान उसे अपनी कृति से आसक्ति हो गई। निर्माण पूरा होते-होते शिल्पकार उस प्रतिमा पर सम्मोहित हो गया और कहते हैं, प्रतिमा सजीव हो उठी। शिल्पकार ने उससे ब्याह किया और दोनों पति-पत्नी बतौर पर रहने लगे।
अधिकांश लोग उक्त दृष्टांत को ढ़कोसला कह कर भले ही खारिज कर दें किंतु इसमें मनचाहा हासिल करने की वह कुंजी है जो सहज बुद्धि या तर्क के परे है। यह जरूर है कि यह कुंजी साधारण चाहत में काम नहीं करती। भाव यों न हो कि “मिल जाए तो ठीक है” बल्कि चाहत दहकती, फड़कती होनी चाहिए। मन में यह बैठ जाए कि इसके बगैर गुजारा नहीं, तभी मिलेगा। जब शिल्पकार के दिल में ज्वलंत इच्छा उठी, तब उसने स्वयं को उसकी प्राप्ति के मिशन में पूरी तरह झोंक दिया और उसे अभीष्ट मिला। इस सिद्ध मंत्र की व्याख्या में अमेरिकी दार्शनिक एरिक हाफर बताते हैं, “आंकाक्षा तीव्र होने पर अवसर तो मिलते ही हैं, व्यक्ति में लक्ष्य हासिल करने के वे जरूरी हुनर भी पैदा हो जाते हैं जिनकी उसने सोची नहीं थी।”
प्रयत्नों के बावजूद मनचाहा नहीं मिलने पर अधिकांश लोग घुटने टेक देते हैं, ये वे हैं जिनकी चाहत क्षीण रही। थामस एडिसन ने कहा, जीवन में बहुतेरे असफल व्यक्ति वे हैं जिन्हें घुटने टेकते समय अहसास ही नहीं था कि वे सफलता के द्वार पर पहुंच चुके हैं, या बस एकाध हाथ पीछे हैं। वे मान लेते हैं कि फलां कार्य उनके बस का नहीं। रामधारी सिंह दिनकर ने कहा, “दुनिया में जितने मजे बिखरे हैं उनमें तुम्हारा भी हिस्सा है। वह चीज भी तुम्हारी हो सकती है जिसे तुम अपनी पहुंच के परे मान कर लौटे जा रहे हो।”
मनोयोग से किए जाते कार्य या पूजा अर्चना में हम संपूर्ण ऊर्जा लक्ष्य में लगा देते हैं और एक अलौकिक उत्साह, उमंग और स्फूर्ति से सराबोर हो जाते हैं। तब दुनियादारी की सुध नहीं रहती, एक ही विचार एकछत्र पसर जाता है, रुटीन गपशप या लोकप्रिय टीवी सीरियल रास नहीं आते। मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि ऐसी स्थिति में आने पर व्यक्ति के समक्ष अभीष्ट वस्तु या व्यक्ति प्रकट हो जाता है। भक्तों को प्रभु दिख जाते हैं और मीराबाई या रसखान को भगवान कृष्ण मिल जाते हैं।
अनेक व्यक्ति प्रतिष्ठा बरकरार रखने जैसे इरादों से कोर्ट-कचहरियों के चक्कर काटते बहुमूल्य समय गुजार देते हैं, उस मकान या जमीन के टुकड़े के लिए जिसकी उनकी औलादों को परवाह नहीं रहेगी। लक्ष्य पाने के संघर्ष में सब कुछ दांव पर लगाने से पूर्व इसकी सार्थकता अवश्य सुनिश्चित की जानी चाहिए।
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दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्ठ के ऊर्जा स्तंभ में 9 फरवरी 2017 को प्रकाशित।
लिंकः https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-desire-15501279.html
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