‘‘सबसे बड़ा रुपय्या’’ मानने वाले बेचारे हैं। वे नहीं जानते कि दनिया की बेहतरीन चीजें न बिकती हैं, न खरीदी जा सकती हैं। इन्हें श्रम और अथाह धैर्य से अर्जित करना पड़ता है। पैसा और पैसे वालों की वाहवाही करने वाले कालांतर में जब धड़ाम से गिरते हैं तो उनका साथ देने वाला कोई नहीं होता।
बेशक बिना धन के रोजमर्रा की जिंदगी भली भांति चलाना संभव नहीं। इसके अभाव में जहां अनेक कार्य ठप्प हो जाते हैं, वहीं, इसकी बहुतायत अक्सर अभिशाप बन जाती है। हवा कुछ यों है कि बहुतेरे जुगाड़ में रहते हैं कि कैसे कम से कम मेहनत और जल्द से जल्द में ढ़ेर धन-संपत्ति जुटा ली जाए।
बहुमूल्य चीजें बिकाऊ नहीं होतींः स्वास्थ्य, गहरी नींद, निश्छल प्रेम, सच्ची दोस्ती, निष्ठा ऐसी चीजें हैं जो किसी भी कीमत पर उपलब्ध नहीं होतीं, इन्हें श्रम, साधना और धैर्य से अर्जित किया जाता है। जो बहुत मूल्यवान है उसके लिए पैसे नहीं चुकाने पड़ते। जिनके पास अथाह धन है वे यह जानते हैं, उनमें से बहुतेरे इनके लिए छटपटाते रहते हैं। आप दवा खरीद सकते हैं, स्वास्थ्य नहीं; सुविधाएं खरीद सकते हैं, नींद या शांति नहीं।
युवाओं में ज्यादा है नोट कमाने की भूखः अथाह धन की उत्कंठा विशेषकर युवाओं और बच्चों को भ्रमित कर रही है और उनके सुचारु, स्वस्थ जीवन में बाधा बन रही है। जिनका ध्यान मेहनत की तरफ नहीं वे माता-पिता को झपोड़ने या चोरी-चकारी आदि में लग जाते हैं क्यों कि पैसा चाहिए। इस चिंताजनक सीन के लिए वे माता-पिता, वरिष्ठजन, नेता और समाज भी दोषी हैं जो अपरिपक्व दिलों में संतान के मन में ठूंस देते हैं कि सफलता का पैमाना आर्थिक संवृद्धि है। यह सीख-पढ़ कर कि धन के बूते संसार में सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है, वह धनार्जन को लक्ष्य बना लेता है और इसे पाने के लिए उचित-अनुचित में भेद नहीं करता। ऐसा व्यक्ति जीवन मूल्यों के साथ सहज ही समझौता करेगा। संबंधों की गरिमा और आध्यात्मिक समृद्धि उसके लिए फिजूल के होते हैं।
पैसे बटोर कर नेकी के झूठे ऐलानः युवाओं के एक वर्ग का कथन कि धन प्राप्ति के बाद वे दीन-हीनों तथा अन्य जरूरतमंदों को विभिन्न रूप से बेहतर सेवाएं प्रदान करने में सक्षम बन जाएंगे, नौटंकी है। व्यवहार में, एकबारगी धनार्जन की राह थाम चुका व्यक्ति उसी दिशा में उत्तरोत्तर धंसता चला जाता है। धन की आवक बढ़ेगी तो अनावश्यक वस्तुएं संग्रहीत होंगी, गलत आदतें पनपेंगी जो केवल क्षणिक आनंद देती हैं। अनुभव बताता है, जो जीवनशैली हम चुन लेते हैं उससे वापसी प्रायः दुष्कर होती है। इसीलिए सयाने कहते थे, घर में अधिक धन या स्वर्ण रखना शुभ नहीं होता।
पश्चिम की भोगवादी संस्कृतिः हिंदू संस्कृति में धन संग्रह, दूसरे शब्दों में धन अर्जित करने की संस्तुति नहीं की जाती बल्कि कम से संतुष्टि पर जोर है। अन्य समुदायों में ऐसा नहीं है। धनवान कैसे बनें, धनाढ्य जन्दी कैसे बन सकते हैं इन विषयों पर बहुत कुछ लिखा-पढ़ा जाता है, हमारे यहां भी यह बीमारी पांव पसार रही है।
बौद्धिक समृद्धि ही वास्तविक समृद्धि हैः जीवन में धनार्जन को सर्वोपरि मानने वाला आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा भावनात्मक दृष्टि से संपन्न व्यक्ति को कम आंकेगा, उसे हेय दृष्टि से देखेगा। उसमें अहंकार आ जाता है, और यही अंततः उसके विनाश का कारण बनता है। इससे पूर्व कि धन की अधिकता हमें उचित मार्ग से विचलित कर दे, विचार करना होगा कि श्रेष्ठ, सुखी जीवन के लिए कितने धन से आवश्यक कार्य निभ जाएंगे। धनार्जन या धन संग्रह लक्ष्य बन जाएगा तो हम सही मायनों में विकसित नहीं होंगे, न ह ीवह दायित्व निभा सकेंगे जिस निमित्त हम दुनिया में आए हैं।
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आलेख का संक्षिप्त, प्रारूप 21 अगस्त 2024, बुधवार के दैनिक जागरण (संपादकीय पेज, ऊर्जा कॉलम) में ‘‘धन साधन हो, लक्ष्य नहीं’’ शीर्षक से प्रकाशित।
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हमारी प्राथमिक शिक्षा प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। एक कुशाग्र बुद्धि का आइएएस अधिकारी जब गैर-जानकार व्यक्ति की तरह सिर्फ पैसा बटोरता नजर आता है तो हमारी शिक्षा का स्वरूप परिलक्षित हो जाता है।