मां का दूधः बच्चे के लिए कुदरत का नायाब तौहफा

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अनेक परीक्षणों के बाद, कुछ दशक पूर्व ही विज्ञान ने स्तनपान की आदिकाल से चली आई प्रथा पर मुहर लगाते हुए ऐलान किया कि बच्चों के पोषण और उनके शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक विकास के लिए मां के दूध का तोड़ नहीं है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि माताओं और परिजनों की अज्ञानता या नासमझी के कारण विश्व के एक तिहाई बच्चे स्तनपान के प्रकृति द्वारा प्रदŸा अधिकार से वंचित रहते हैं और बीमारियों व संक्रमणों की चपेट में जल्द आते हैं। बच्चे के आभरण के इस साधारण तरीके से करोड़ों नन्हों की जान बचाई जा सकती है।

स्तनपानः कुदरत का करिश्मा
शिशु के लिए एकदम सही तापमान पर उपलब्ध इस आदर्श आहार में उसके लिए जरूरी सभी आवश्यक तत्वों का उचित मात्रा में समावेश है जिन्हें वह अनायास, सहजता से ग्रहण करता है। मां का दूध बच्चे को तृप्त करने के अलावा मां और बच्चे के बीच भावनात्मक रिश्ते बनाता और सुदृढ़ करता है। मान्यता है कि मां में दूध का स्राव और इसकी मात्रा बच्चे के प्रति उसकी ममता के अनुपात में होती है। कुदरती प्रसव के पैरोकार ग्रैंटली डिक-रीड बताते हैं, नवजात की तीनों जरूरतों – मां के बाहों की गरमाहट, उसकी छाती से प्राप्त भोजन और मां सामने है, इससे मिलती सुरक्षा – की आपूर्ति स्तनपान बखूबी करता है। इस दूध को बिल्ली द्वारा चट किए जाने का खतरा भी नहीं रहता। मलेशियाई एक्टिविस्ट अनवर फज़ल की राय में स्तनपान की कुदरती ताकत दुनिया के महानतम आश्चर्यों के एक है।

मां के दूध के अनेक लाभों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और अमेरिकी एकाडेमी आॅफ पेडिएट्रिक्स (एएपी) बच्चे को पहले छह माह तक मात्र स्तनपान कराने और उसके बाद संपूरक आहार के साथ न्यूनतम डेढ़-दो साल तक स्तनपान कराने की पुरजोर संस्तुति करते हैं। स्तनपान को सवंर्धित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘वाबा’ (वल्र्ड एलाएंस फाॅर ब्रेस्टफीडिंग एक्शन) की पहल पर डब्लूएचओ, यूनिसेफ व सहसंस्थाओं के सहयोग से प्रति वर्ष 1-7 अगस्त के दौरान विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है। मातृ दुग्ध का सेवन और बाल स्वास्थ्य की बेहतरी के प्रयासों में यूएनओ और यूनेस्को द्वारा 1990 में इन्नोसेंटी उद्घोेषणा के बाद तेजी आई। 170 से अधिक देशों में आयोजित किए जाने वाले इस सप्ताह भर के कार्यक्रम का 2019 का थीम है, ‘‘अभिभावकों को सशक्त करें, स्तनपान को सुकर बनाएं’’ (एम्पावर पैरेंट्स, एनेबल ब्रेस्टफीडिंग)। सभी माताओं को स्तनपान कराना चाहिए बशर्ते वे एचआईवी, सक्रिय टीबी से पीड़ित हो या विशिष्ट दवाएं ले रही हों। कुछ महिलाओं को भ्रांति रहती है कि स्तनपान कराने से उनकी शेप बिगड़ जाएगी। इस धारणा को बेबुनियाद बता कर वैज्ञानिक कहते हैं कि बे्रस्ट के लटकने का कारण बार-बार गर्भधारण, पक्की उम्र और धूम्रपान होते हैं। बच्चे को दूध पिलाते रहेंगे तो यह बनता रहेगा। बाल विशेषज्ञ डा0 साराह बक्ले ने दूध पिलाती मां के स्तन सदा लबालब रहने की तुलना प्रकृति के प्रचुरता के सिद्धांत से की हैः जितना ज्यादा दिया जाता है उसी अनुरूप उसकी प्रतिपूर्ति होती रहती है। स्तनपान न करा सकने वाली महिलाओं के पास सर्वोत्तम विकल्प है अपना निकाला या किसी अन्य महिला का दूध बच्चे को दें। कुछ देशों में स्वेच्छा से अपना दूध दान करने वाली महिलाओं के सहयोग से व्यावसायिक स्तर पर यह दूध असमर्थ, जरूरतमंद बच्चों के लिए सप्लाई किया जाता है।

इसी के साथ परिवार व समुदाय द्वारा स्तनपान जारी रखने में सहायता करनी चाहिए। स्तनपान बरकरार रखने की स्थिति विकसित देशों में भी संतोषप्रद नहीं है। अमरीका में हालांकि 70 प्रतिशत महिलाएं अपने बच्चों को स्तनपान शुरू करा देती हैं किंतु 6 माह बीतने तक मात्र 20 प्रतिशत ही इसे चालू रखती हैं। संयुक्त अरब अमीरात में 6 माह तक सिर्फ स्तनपान बाध्यकारी है बशर्ते वे चिकित्सकीय दृष्टि से अयोग्य हों। स्तनपान में एक बड़ी बाधा डब्बाबंद शिशु आहार उत्पादकों-विक्रेताओं से है जो आईएमएस अधिनियम 1993 और 2003 के कड़े प्रावधानों के बावजूद लुभावने दुष्प्रचार और हरकतों से बाज नहीं आते। इस संबंध में मौजूदा योजनाओं जैसे इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना, आईसीडीएस, आईवाईसीफ को पुख्ता करना होगा।

बीमारियों से बचाव
अनेक अध्ययनों ने पुष्टि की है कि मां के दूध में बच्चे की सर्वोत्तम वृद्धि के लिए जरूरी सभी पोषकतत्व, कैलोरी व तरल मौजूद होते हैं, डब्बाबंद दुग्धों के साथ ऐसा नहीं है। स्तनपान किए बच्चे अधिक स्वस्थ, हृष्टपुष्ट व न्यूमोनिया, ब्रोंकाइटिस, डायरिया और मेनिन्जाइटिस जैसे संक्रमणों और सूखा, कुपोषण आदि से मुक्त रहते हैं, उनकी रोगप्रतिरोध क्षमता बेहतर होती है। मां का दूध अनीमिया, सडन इन्फैंट डैथ सिन्ड्राॅम, डायबिटीज़, मोटापा तथा कैंसरों के कुछ रूपों से भी बचाव रखता है। स्तनपान न किए मामलों में शिशु मत्र्यता स्तनपान किए बच्चों से 14 गुना आंकी गई है। अपना दूध पिलाती माताओं में कैंसर, खासकर ब्रेस्ट कैंसर की संभावना जरब होती है, वे गर्भावस्था या डिलीवरी के बाद डिप्रेशन का शिकार नहीं होतीं। विशेषज्ञों की राय में, एक बार स्तनपान कराने में करीब 20 कैलोरी खर्च होती हैं, अतः ऐसी माताएं मोटापे से बची रहती हैं, उनमें हृदय और श्वसन की बीमारियों, आॅस्टियोपोरोसिस और डायबिटीज के लक्षण कम देखे गए हैं। प्रोफेसर स्टीवेन गाॅलिन कहते हैं, शिशुओं के ‘‘अमरीकी भोजन में उन तत्वों का लोप हो रहा है जो स्तनपान से हासिल होते हैं, इनमें वे फैट हैं जो शिशु के मस्तिष्क के विकास के लिए आवश्यक हैं, और अमरीकी बच्चों की गणित व विज्ञान में पिछड़ने की वजह यही है।’’ मेडिकल जर्नल जामा के अनुसार लंबी अवधि तक स्तनपान किए बच्चों की भाषाई पकड़ और बौद्धिकता बेहतर होती है। एक नई खोज से पता चला है कि स्तनपान किए बच्चों के टेलोमेरे लंबे होते हैं, इसी कारण वे दीर्घायु और डायबिटीज़ व अन्य क्रानिक बीमारियों से कम प्रभावित होते हैं। टेलोमेर डीएनए के क्रोमोसोम के किनारे, फीते के अंत में पलास्टिक की भांति क्रोमोसोम को बांधे रखते हैं और उम्र के साथ विभाजित हो कर छोटे रह जाते हैं।

देश में स्तनपान संस्कृति को बढ़ावा देने वाले प्रमुख संगठन हैं, स्वैच्छिक क्षेत्र में ब्रैस्टफीडिंग प्रोमोशन नेटवर्क आॅफ इंडिया और सरकारी क्षेत्र में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का खाद्य एवं पोषणाहार बोर्ड। स्वैच्छिक संस्था ट्रेन्ड नर्सिस एसोसिएशन आॅफ इंडिया समूचे देश में फैली अपनी शाखाओं के जरिए स्तनपान के बाबत जागरूकता बढ़ाती है। संप्रति बिहार, उ.प्र. और हरियाणा में स्तनपान का चलन अन्य राज्यों से काफी कम है। बाॅलीवुड अभिनेत्री लिजा हेडन, टीवी होस्ट पद्मा लक्ष्मी, क्रिसी ताइज़न, टीवी अभिनेत्री श्वेता साल्वे सरीखी अनेक सेलिब्रिटीज़ सोशल मीडिया में स्तनपान को परोक्षरूप से संवर्धित कर रही हैं। आस्ट्रेलियाई सीनेटर लरीसा वाटर्स ने तो वहां की संसद में अपनी बेटी को स्तनपान कराते हुए सुर्खियों में आ गईं।

स्तनपान संस्कृति के अभियान में घर-परिवार, समाज, कार्यस्थल, नीति व शासनतंत्र, सभी का योगदान अपेक्षित है। कामकाजी महिलाओं को कार्य के दौरान स्तनपान कराने की छूट और उचित सुविधाएं अनिवार्यतः प्रदान करने के निर्देश हैं। सरकार ने दो बच्चों तक माताओं के लिए दो वर्ष की बाल देखभाल छुट्टी का और पिताओं को इस निमित्त सहयोग देने के लिए 15 दिन की विशेष छुट्टी का प्रावधान किया है। महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों में स्तनपान कराने के लिए सुविधा न होना खासी समस्या है। इसी मुद्दे पर दिल्ली हाई कोर्ट में दायर एक याचिका पर कोर्ट ने दो सप्ताह पूर्व केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय सहित अन्य पक्षों से तलब किया है कि अन्य दुनियाभर में यह सुविधा है तो यहां क्यों नहीं?
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दैनिक वीर अर्जुन के बिंदास बोल स्तंभ में 4 अगस्त 2019 को प्रकाशित
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