हर कोई हड़बड़ी में है। चैन किसी को नहीं! हो भी कैसे, मन स्थिर नहीं रहता। मन शांत, संयत नहीं रहेगा तो काम भी आधे-अधूरे होंगे, न ही उसमें लुत्फ आएगा। अच्छी बात यह है कि मन को शांत रखने की सामर्थ्य हर व्यक्ति में है।
कोई भी कार्य सुचारु रूप से संपन्न होने की शर्त है कि मन शांत, संयत रहे। शांत मन में सौहार्द, प्रसन्नता और सुख का वास होता है; इसमें शंकाएं, दुविधाएं और उलझनें नहीं पनपतीं। हमारी सोच निर्धारित करती है कि हम जीवन में कितना शांत व निश्चिंत अथवा चिंतित व तनावग्रस्त रहेंगे। स्वयं शांत रहेंगे तो दूसरे को भी शांति दे सकेंगे। सुख-शांति के लिए मन की समुचित दिशा अहम है। अन्य प्राणियों से इतर, प्रभु ने मनुष्य को अदभुद शक्ति प्रदान की है कि वह जिस चाहे विचार को मनमंदिर में प्रतिष्ठित कर सकता है।
शांति तो भीतर है
जिस प्रकार अजान मृग अपनी ही नाभि में स्थित कस्तूरी के लिए दर-दर भटकता है, उसी प्रकार मनुष्य अंदरुनी शांति के लिए धर्मस्थलों, सत्संगों, अध्यात्म केंद्रों, नदी-तटों, पर्वतों आदि में समाधान तलाशता है फिरता है और सफलता हाथ न लगने पर अशांत हो जाता है। शांति का स्रोत अपने भीतर है, यह जान लेने वाला बाह्य जगत में नहीं भटकेगा।
कुछ व्यक्ति प्रायः शांत रहते हैं तो कुछ सदैव अशांत। प्रतिकूल परिस्थिति में एक व्यक्ति संयत रहता है, जबकि दूसरा व्यक्ति अशांत, बल्कि विक्षिप्त हो जाता है। संयत रहने वाला दूसरों के कुत्सित आचरण या अप्रिय व्यवहार से अपनी शांति भंग नहीं होने देगा। वह जानता है कि दूसरे के कृत्य से प्रभावित होने का सीधा अर्थ यह स्वीकृति है कि आप उससे कमजोर हैं।
शांति मन्नत मांगने से नहीं मिलती, यह एक विशिष्ट सोच की स्वाभाविक परिणति है। शांति-अशांति दोनों मन की उपज हैं। मन में दुर्भावना, वैमनस्य, ईर्ष्या, क्रोध, स्वार्थपरकता जैसे नकारात्मक भाव घर जाने पर शांति नहीं मिलेगी। जिन धारणाओं, विचारों और मान्यताओं को मन में सहेजेंगे, पोषित-सिंचित करेंगे कालांतर में वही सुदृढ़ हो कर हमारी जीवन दिशा निर्धारित करेंगी। विचारों के अनुरूप कर्म होंगे और फल भोगेंगे। जो असंभव है उसके लिए रोएं-धोएं नहीं, वैसा ही स्वीकार कर लें। किसी भी प्रतिकूल परिस्थिति में धैर्य न खोएं।
मन तो चंचल है
मन की स्वाभाविक प्रवृत्ति चंचलता है। इसकी गति वायु से तेज बताई गई है। मन को विचलित करने के लिए घर में, बाहर, कार्यस्थल पर, चौराहों, बाजारों, राहों में ढ़ेर सामग्री मौजूद है। मन का सांमजस्य बनाए रखना आज बड़ी चुनौती है। समाज और व्यक्ति की शांति भंग करते कदाचार तथा आपत्तिजनक आचरण के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि पर अंकुश लगाने के लिए संयम और अनुशासन का अभ्यास करना आवश्यक होगा।
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यह आलेख तनिक संक्षेप में 16 जुलाई 2022, शनिवार के दैनिक जागरण (ऊर्जा कॉलम) में “मन की शांति” शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
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शान्त चित प्रभु की महत्वपूर्ण देन है और लेखक ने इसे उजागर कर बहुत कृपा की है. समाज के लोग शांति से काम करने की विधा के महत्व को समझ ले तो अच्छा होगा.
लेख पर अमल करके सभी का भला होगा यह निश्चित है.
बेहतर कल की आशा अवश्य जगती है, किंतु फिर मन अशांत होने लगता है। चांद राम।