Category: आत्म मंथन

सुखी रहने के लिए अपेक्षाएं घटानी पड़़ेंगी

  अपने पति या पत्नी, बेटे, बेटी, संबंधियों, सहकर्मियों, पड़ोसियों, मित्रों और परिजनों से आप कितना संतुष्ट या प्रसन्न रहते हैं, यह उन उम्मीदों, अपेक्षाओं पर निर्भर है जो आपने दूसरों से बांध रखी हैं। जितनी ज्यादा अपेक्षाएं उतना ज्यादा दुख। इस प्रकार के दुखड़े आपने भी खूब सुने होंगेः (1) यह वही संतान है […]

छांव चाहिए तो धूप भी सहनी पड़ेगी

जिंदगी वरदान है या अभिशाप? यह तो नहीं हो सकता कि फूल हैं तो कांटें नहीं हों। एक ही परिस्थिति एक जन के लिए बला बन जाती है तो दूसरा सहजता से बेड़़ा पार कर लेता है। टंटा सोच का है। सुख का अर्थ प्रतिकूल परिस्थियों की अनुपस्थिति नहीं है। जीवन धूप-छांव का खेल है; […]

शांति रखेंगे तो सभी कार्य भलीभांति संपन्न हो जाएंगे

हर कोई हड़बड़ी में है। चैन किसी को नहीं! हो भी कैसे, मन स्थिर नहीं रहता। मन शांत, संयत नहीं रहेगा तो काम भी आधे-अधूरे होंगे, न ही उसमें लुत्फ आएगा। अच्छी बात यह है कि मन को शांत रखने की सामर्थ्य हर व्यक्ति में है। कोई भी कार्य सुचारु रूप से संपन्न होने की शर्त है […]

कोई भी परिवेश, या परिस्थिति बेहतरीन नहीं होेती, उसे अनुकूल बनाना होता है

वह मकान किसी को नहीं फबता, फलां फलां दिन अमुक कार्य के लिए शुभ नहीं होते – ऐसी धारणाएं बनाने वाले न स्वयं खुशनुमां रहते हैं , दूसरों को और दुखी करते हैं। इसके बदले, यह गांठ बांध ली जाए, अपने चित्त और मन को दुरस्त कैसे रखना है तो जीवन आनंद बन जाएगा। वास्तु […]

गलती हुई है तो मान लेने में ही बड़प्पन है

कार्य करेंगे तो गलतियां भी होंगी। गलतियां मान लेंगे तभी सुधार होगा, अन्यथा नहीं।

कार्य का दायरा सीमित होगा तो ऊर्जा में बिखराव नहीं आएगा, परिणाम भी उत्कृष्ट मिलेंगे

मन की सामर्थ्य अथाह है, औसत मानसिक स्तर का व्यक्ति भी गुल खिला सकता है। किंतु सांसारिक चिंताओं में स्वयं को उलझा कर व्यक्ति मूल्यवान ऊर्जा छितरा देता है। इसे सहेज कर किसी दिशा की ओर प्रशस्त रहे तो अपना और जग, दोनों का कल्याण कर सकता है। स्कूलों में भौतिकी प्रयोगशाला में केंद्रगामी यानी […]

जो, जितना देंगे वही, उसी अनुपात में वापस मिलेगा; अन्यथा आशीर्वाद/ दुआ तो दूर की ठहरी, कुछ नहीं मिलने वाला

निस्स्वार्थ सेवा का भाव संजोए रखेंगे तो मनोवांछित बिनमांगे मिलना तय है। प्रकृति का विधान है, दिए बिना कुछ नहीं मिलेगा और देने या निस्स्वार्थ सेवा की प्रवृत्ति होगी तो बिनमांगे मिलता रहेगा, सफलताएं कदम चूमेंगी। इसके विपरीत, मांगने की आदत होगी तो कुछ नहीं मिलने वाला। एक प्रसंग रेलयात्रा में सेठ के सामने गिड़गिड़ाते […]

ऐरे गैरों के बस की नहीं है दूसरों के लिए निस्स्वार्थ भाव से कार्य करना

अपने खाने, रहने और सुख-सुविधाएं जुटाने का काम तो निम्नकोटि के जीव भी बखूबी कर लेते हैं। सफल, सार्थक उसी मनुष्य का जीवन है, परहित में कार्य करते रहना जिसकी फितरत बन जाए। प्रकृति की भांति दुनिया में, और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में बहुत कुछ ऐसा घटित होता है जिसे तर्क या सहज बुद्धि […]

शारीरिक अपंगता से ज्यादा खतरनाक है वैचारिक अपंगता

दशकों पुराने आबिद सुरती के एक कार्टून में, एक पिता अपने बेटे की जबरदस्त धुनाई करते दिखता है। पड़ोसी के पूछने पर बताते हैं, ‘‘कल इसका रिजल्ट आने वाला है और तब तक मैं इंतजार नहीं कर सकता”। घंटी बजाने पर दरवाजा तुरंत न खुलना, रेस्तरां में ऑर्डर की आइटमें प्रस्तुत होने में देरी, झट […]

पुरखों, पित्रों से जुड़ाव हमारा जीवन संवार देता है

अपनी जड़ों यानी पुरखों, दिवंगत या जीवित मातापिता, घर-परिवार से जुड़ा व्यक्ति उस तानेबाने की अथाह शक्तियों से लाभान्वित होगा जिसका वास्तव में वह अंश है। निस्संदेह ज्वलंत इच्छा, अथक प्रयास और कर्मठता के बूते किसी भी नस्ल, पंथ या वर्ग का व्यक्ति चयनित क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करता है। तथापि अभीष्ट को पाने की […]

जिंदगी के सुखों का दारोमदार मेलभाव पर है

सिद्धपुरुषों की बात अलहदा है जो कई दिन, हफ्ते, महीने बल्कि ज्यादा भी एकांत में सुकून से जी लेते हैं। सांसारिक लोगों को पग पग पर एक दूसरे का संबल चाहिए। दूसरों को अपना समझने की फितरत बन जाएगी तो जीवन आनंदमय हो जाएगा। मनुष्य की मूल प्रवृत्ति एकाकी है। वह दुनिया में अकेला आता […]

भय से मुक्ति

हमारा आचरण जितना सहज, बेबाक उन्मुक्त होगा, उतना ही निर्भीक प्रसन्न रहेंगे। मनुष्य प्रभु की अनुकृति है। उसके व्यवहार या आचरण में न्यूनाधिक त्रुटियां या कमियां स्वाभाविक हैं। इस अधूरेपन के अहसास बिना त्रुटियों का निराकरण संभव न होगा? तथापि अपूर्णता का अहसास दिल में घर जाना विकृति है; ऐसे व्यक्ति में असुरक्षा की भावना […]

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