Category: विमर्श

वाहवाही बटोरने की तड़पन

डिग्रियां, तगमे, फीतियों, मेडलों, अलंकरणों की चाहत से लोग विक्षुप्त हो रहे हैं। जिनका समूचा ध्यान बाहरी छवि निखारने और वाहवाही बटोरने में रहेगा क्या वह कार्य में चित्त लगा सकता है? उल्टा टोप, उल्टी जैकेट या नई अजीबोगरीब डिजाइन वाली शर्ट का फोटो फेसबुक में डाल कर वाहवाहियों की झड़़ी न लगने से लोग […]

दिशा सही न हो तो ज्ञान, हुनर, धन – सब धरा रह जाएगा, न ही मंजिल मिलेगी

महाज्ञानी हैं, समझदार हैं, सूझबूझ में कमी नहीं फिर भी वह नहीं हासिल कर पाए जिसके अरमान दिल में सदा संजोए गए थे। क्योंकि दिशा सही न थी। दूसरी बात – जितना जल्द दिशा तय कर लेंगे उसी मात्रा में शेष जीवन आनंद और संतुष्टि से जी सकेंगे। सूटबूट में एक व्यक्ति सड़क किनारे पालथी […]

जितना दिखाई पड़़े, उससे परे देखना होगा

  समान आयु, जिम्मेदारी, आमदनी, पारिवारिक-आर्थिक परिस्थितियों के दो व्यक्तियों में से एक हंसता-खिलखिलाता, स्वस्थ, कमोबेश संतुष्टिमय जीवन बिता रहा होता है तो दूसरा विपन्नता और चिंताओं में ग्रस्त, जैसे तैसे दिन काटता है। इतना फर्क आ जाता है तो व्यक्ति की सोच के कारण। एकबारगी जिस  सांचे में ढ़ल जाएंगे उसमें तब्दील दुष्कर होगी। […]

जिंदगी की दौड़ में आप कितना ऊपर, और कितनी दूर पहुंचेंगे, आपकी संगत तय करेगी

कहावत है, एक प्रजाति के पक्षी झुंड में एक साथ विचरण करते हैं। मनुष्यों में भी यही नियम लागू होता है। अंतर यह है कि मनुष्य अपने स्वभाव और गंतव्य के अनुसार संगी-साथियों का चयन स्वयं करता है। अतः किनसे घनिष्ठता बढ़ाई जाए, यह गंभीर मुद्दा है। उस नन्हीं चील की दुर्दशा पर विचार करें […]

धन, वस्तु या धन की सार्थकता तभी तक है जब तक वह प्रवाहित होता रहेगा

प्रवाह प्रकृति का आधाभूत नियम है। प्रवाह – ऊंचाई से निचले स्तर की ओर, बहुतायत से अभाव की ओर, सघनता से विरलता की ओर स्वाभाविक है। इस नियम की अनदेखी से व्यक्ति झमेलों में गिरेगा। अनेक उम्रदारों द्वारा सहेज-सहेज कर दशकों तक संचित उस धन को व्यर्थ समझा जाए जो अंत में न स्वयं उनके, […]

श्राद्ध और कृतज्ञता भाव

हिंदुओं द्वारा प्रतिवर्ष मनाए जाते श्राद्ध कल 6 अक्टूबर, बुधवार को पूर्ण हो रहा है। श्राद्धकर्म से जहां पितर तृप्त होते हैं वहीं हम धन्य होते हैं। मान्यता है कि इस दिन वे सभी पितरों को श्राद्ध दे सकते हैं जिन्हें अपने दिवंगत करीबियों की पुण्य तिथि ज्ञात नहीं है। कृतज्ञता दैविक भाव है, यह […]

ज्ञान हासिल करने और बांटने से ज्यादा अहम उसे आचरण में ढ़ालना है

परिजनों, साथियों तथा अन्य सहजीवियों से मेलजोल तथा प्रेम बनाए रखने पर व्याख्यान देने वाले जितने धर्मगुरु, कथावाचक, बाबा और फकीर मिलेंगे उन्हें सुनने को बेताब भक्त उनसे हजारों गुना मिल जाएंगे। ये सार्वजनिक मंचों से चेतन, अवचेतन पर गोलीबारी करते हुए ज्ञान बांटने वालों से अलहदा एक वर्ग उनका है जो निजी दायरों में […]

पोषण से कहीं ज्यादा सांसों पर है सेहत का दारोमदार, जी हां! इनकी फिक्र करें

कोविड से निबटने के लिए पिछले कुछ महीनों तक ऑक्सीजन के लिए मचे हाहाकार का बड़ा संदेश है कि जीवन पंचतत्वों में एक वायु के प्रति अपनी दृष्टि में सुधार करें। साधु वृत्ति के अपने एक संबंधी थे, 93 वर्ष की आयु में, 2008 में चल बसे थे। आखिरी दिनों तक ओजस्वी, एकदम स्वस्थ, जिंदादिल, […]

आपका कहा-लिखा दूसरों के सर-आंखों पर रह सकता है बशर्ते …

चुनावी बयानबाजियों, बाजार में बिक्री बढ़ाने और रोजमर्रा की जिंदगी में अपना उल्लू साधने के लिए अमूनन शब्दों की जादूगरी का जम कर इस्तेमाल होता है। शब्द ऊर्जा है, इनका प्रयोग जितना सोच विचार कर करेंगे उतना ही वे वजनदार होंगे और आपकी शख्सियत में चार चांद लगाएंगे। शब्दों की उत्पत्ति दैविक, और इनका स्वरूप […]

शांत, संतुलित रहें किंतु कदाचित प्रचंड प्रतिरोध भी नितांत आवश्यक होता है

दुनिया के सुख मेल में हैं, टकराने में नहीं। तो भी दूसरे को जताना आवश्यक है कि आप मूर्ख नहीं हैं। जीवन का सुख सुलह में है, भिड़ंत में नहीं। जीवन उसी अनुपात में शांतिदाई, सहज, आनंदमय और सार्थक होगा जितना इसमें प्रेम और सौहार्द का समावेश होगा। प्रतिरोध, टकराव, आक्रोश और प्रतिशोध के भाव […]

प्रसन्न रहना सरल है, बड़प्पन सरल आचरण अपनाने में है

मनुष्य की चहुमुखी संवृद्धि और सफलता की चाहत को भांपते हुए अनेक धर्मगुरु तथा मोटीवेटर ‘प्रसन्नता’ को प्रभावी उपाय बतौर प्रस्तुत करते हैं। कुछ आध्यात्मिक गुरु विभिन्न स्तरों पर हंसने के नियमित सत्र आयोजित करते हैं। इस दौरान प्रतिभागियों से 15-20 मिनट या अधिक अवधि तक हंसी का सामूहिक अभ्यास कराया जाता है। स्वाभाविक है, […]

संतान से अनावश्यक मोह कष्टकारी होगा

  संतान की परवरिश कर्तव्यभाव से करें, प्रतिफल की आस रहेगी तो जीवन बोझिल हो जाएगा। कार्यस्थल में जिस कुर्सी पर हम बरसों बैठते रहे, घर में जिस बिस्तर पर सोए, जिस थाली में भोजन ग्रहण करते रहे, पार्क की जिस बेंच पर अक्सर बैठे, या जिस वृक्ष या पालतू जानवर पर प्रतिदिन दृष्टि जाती रही, […]

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