Category: आत्म मंथन

ऐरे गैरों के बस की नहीं है दूसरों के लिए निस्स्वार्थ भाव से कार्य करना

अपने खाने, रहने और सुख-सुविधाएं जुटाने का काम तो निम्नकोटि के जीव भी बखूबी कर लेते हैं। सफल, सार्थक उसी मनुष्य का जीवन है, परहित में कार्य करते रहना जिसकी फितरत बन जाए। प्रकृति की भांति दुनिया में, और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में बहुत कुछ ऐसा घटित होता है जिसे तर्क या सहज बुद्धि […]

शारीरिक अपंगता से ज्यादा खतरनाक है वैचारिक अपंगता

दशकों पुराने आबिद सुरती के एक कार्टून में, एक पिता अपने बेटे की जबरदस्त धुनाई करते दिखता है। पड़ोसी के पूछने पर बताते हैं, ‘‘कल इसका रिजल्ट आने वाला है और तब तक मैं इंतजार नहीं कर सकता”। घंटी बजाने पर दरवाजा तुरंत न खुलना, रेस्तरां में ऑर्डर की आइटमें प्रस्तुत होने में देरी, झट […]

पुरखों, पित्रों से जुड़ाव हमारा जीवन संवार देता है

अपनी जड़ों यानी पुरखों, दिवंगत या जीवित मातापिता, घर-परिवार से जुड़ा व्यक्ति उस तानेबाने की अथाह शक्तियों से लाभान्वित होगा जिस कड़ी का वह अंतिम अंश है। निस्संदेह ज्वलंत इच्छा, अथक प्रयास और कर्मठता के बूते किसी भी नस्ल, पंथ या वर्ग का व्यक्ति चयनित क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करता है। तथापि अभीष्ट को पाने […]

जिंदगी के सुखों का दारोमदार मेलभाव पर है

सिद्धपुरुषों की बात अलहदा है जो कई दिन, हफ्ते, महीने बल्कि ज्यादा भी एकांत में सुकून से जी लेते हैं। सांसारिक लोगों को पग पग पर एक दूसरे का संबल चाहिए। दूसरों को अपना समझने की फितरत बन जाएगी तो जीवन आनंदमय हो जाएगा। मनुष्य की मूल प्रवृत्ति एकाकी है। वह दुनिया में अकेला आता […]

भय से मुक्ति

हमारा आचरण जितना सहज, बेबाक उन्मुक्त होगा, उतना ही निर्भीक प्रसन्न रहेंगे। मनुष्य प्रभु की अनुकृति है। उसके व्यवहार या आचरण में न्यूनाधिक त्रुटियां या कमियां स्वाभाविक हैं। इस अधूरेपन के अहसास बिना त्रुटियों का निराकरण संभव न होगा? तथापि अपूर्णता का अहसास दिल में घर जाना विकृति है; ऐसे व्यक्ति में असुरक्षा की भावना […]

सुंदरता उपभोग की चीज नहीं, अनुभव करने और आनंदित रहने के निमित्त है

बेशक हसीन चेहरों ने बहुतेरे गुल खिलाए हैं, ‘‘हजारों जहाजों को लाइन में खड़ा कर दिया’’, दुनिया के नक्शे बदल डाले। किंतु इससे सुंदरता के मायने नहीं बदल गए।सुंदरता का अर्थ मुखौटे के आकर्षण या इतराती, मटकती अदाओं से नहीं, असल व्यवहार, आचरण में झलकती आपकी सोच और मंसूंबों से है। आपके कहने या ऐलानों […]

बेहतरी तारीखें पलटने से नहीं, सोच को अग्रसर रखने से आएगी

‘‘आज से बेहतर कुछ नहीं क्योंकि कल कभी आता नहीं और आज कभी जाता नहीं’’ फलां कार्य मैं अगले सप्ताह या फिर कभी करूंगा – ऐसे आश्वासन शेखचिल्ली खयालों की अभिव्यक्ति हैं, सुविचारित, दृढ़ सोच की नहीं। भविष्य के लिए स्थगित कार्य का संपन्न होना संदेहास्पद रहता है। अधमने संकल्प वांछित परिणाम नहीं देते। बड़े […]

बेहतरी के लिए लिए बाह्य जगत और अंतःकरण के बीच सांमजस्य बैठाना होगा

जिसने कहा, ‘‘गए जमाने में मरने के बाद आत्माएं भटकती थीं; अब आत्माएं मर चुकी हैं, शरीर भटकते हैं’’ उसका आशय था, आज का व्यक्ति स्वयं से इतना भयभीत रहता है कि उसे अंतःकरण से रूबरू होने का साहस नहीं होता। आत्ममंथन और पुनर्विचार से उसे सिरहन होती है। बाहरी छवि और प्रतिष्ठा के निखार […]

स्वयं को अकेला समझने की भ्रांति न रहे, प्रभु सदा आपके साथ होते हैं

  अप्रिय, विकट या असह्य परिस्थिति में अनेक व्यक्ति स्वयं को नितांत अकेला और बेबस महसूस करते हैं। एकाकीपन की वेदना में कुछेक आवेग में जघन्य कृत्य तक कर डालते हैं हालांकि मामला सामान्य था। समझ का फेर है। जीवन में मात्र दस प्रतिशत वह होता है जिसे हम वास्तव में भोगते हैं, शेष नब्बे […]

आप स्वेच्छा से दुनिया में नहीं आए, जा कैसे सकते हैं?

  अपने अंतरंग मित्र (डा0) गिरधारी नौटियाल बचपन में अपनी एक कविता सुनाते थे, जिसकी पहली पंक्ति है, ‘‘जीवन कभी-कभी जाने क्यों, विषधर बन जाता है?’’ दशकों बाद जैन मुनि तरुण सागर से वैसी ही सुनी, ‘‘ऐसा कोई व्यक्ति न होगा जिसने अपने जीवनकाल में कभी न कभी आत्महत्या का प्रयास न किया हो, या ऐसा […]

जो चाहेंगे वह अवश्य मिलता है, इसलिए भलीभांति विचार कर लें, क्या चाहिए?

बेहतरीन मंजिलों तक पहुंचने के लिए दहकती चाहत आवश्यक है। चाहत के प्रचंड होने पर व्यक्ति की सुषुप्त शक्तियां जागृत होती हैं, ब्रह्मांड की शक्तियां सहयोग देती हैं, और मनोवांछित मिल जाता है। इसीलिए, हमें क्या चाहिए, इस बाबत भलीभांति विचार कर लेना आवश्यक है। लोभ से प्रेरित एक भक्त की अपार साधना से अभिभूत […]

आत्मसम्मान विकृत हो जाए तो अहंकार में बदल जाता है

कुदरत ने हर किसी को अथाह समझदारी और ताकत दी है। किंतु आपके समझदार होने से दूसरा व्यक्ति बेवकूफ नहीं हो जाता। आत्मसम्मान का भाव हमें हौसले देता है, लेकिन दूसरों को हेय समझेंगे तो आप ही भाड़ में चले जाएंगे। पति-पत्नी, पिता-बेटा, भाई-बहन, पड़ोसियों या मित्रों में जरा सी कहासुनी के बाद दोनों पक्षों […]

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