उपभोक्ता बादशाह न सही, बंधक बन कर न रहे
बाजार की शातीर निगाहों से बचे रहना आसां नहीं किंतु नितांत आवश्यक है। बचपन में सुनी-पढ़ी एक कविता में तोतों को समझाया जाता है, ‘‘बहेलिया (शिकारी) आएगा, चुग्गा डालेगा, जाल बिछाएगा, तुम लोभ में फंस मत जाना!’’ तोते इन शब्दों को रट लेते हैं, दोहराते भी रहते हैं किंतु समझते नहीं। पहले तो शिकारी सहम […]