बेशक मेलजोल बिना गुजर नहीं किंतु बड़े कार्य अकेले ही संपन्न होते हैं

लोगों का काम है कहना! आपने जिस सन्मार्ग का चयन किया है, आश्वस्त हो कर चलते रहना है। तभी आपको मंजिल मिलेगी। कंपनी के कार्य से अपने एक मित्र को अक्सर शहर से ढ़ाई सौ कि.मी. दूर दो-तीन दिनों के लिए जाना होता था। हर बार वे गुपचुप रोज देर रात तक घर लौट आते […]

जितना दिखाई पड़़े, उससे परे देखना होगा

  समान आयु, जिम्मेदारी, आमदनी, पारिवारिक-आर्थिक परिस्थितियों के दो व्यक्तियों में से एक हंसता-खिलखिलाता, स्वस्थ, कमोबेश संतुष्टिमय जीवन बिता रहा होता है तो दूसरा विपन्नता और चिंताओं में ग्रस्त, जैसे तैसे दिन काटता है। इतना फर्क आ जाता है तो व्यक्ति की सोच के कारण। एकबारगी जिस  सांचे में ढ़ल जाएंगे उसमें तब्दील दुष्कर होगी। […]

किसी जरूरतमंद की दुनिया आप भी रोशन कर सकते हैं, नेत्रदान से

आपकी महानता इसमें नहीं कि आपके पास क्या है, बल्कि इसमें है कि आप दूसरों को क्या देते हैं। वैसे भी, जिस अनुपात में देंगे उसी अनुपात में वापस मिलेगा। जरा सी देर के लिए घुप्प अंधेरा छा जाने से आप पर क्या बीतती है। कभी सोचें, जिन्हें जन्म से या किसी दुुुर्घटनावश आंशिक या […]

मायने उन्हीं रिश्तों के हैं जो फड़कते, थिरकते रहें

कुछ रिश्ते हमें विरासत में मिलते हैं, शेष हम निर्मित करते हैं। यह उम्मीद करना नादानी है कि नए, पुराने संबंधों को हर कोई निभाता जाएगा क्योंकि पहले तो संबंधों की गरिमा विरले ही समझते हैं, दूसरा इनके निर्वहन में ईमानदारी और अथाह धैर्य चाहिए जो हर किसी के बस की नहीं। जिस प्रकार एक […]

जिंदगी की दौड़ में आप कितना ऊपर, और कितनी दूर पहुंचेंगे, आपकी संगत तय करेगी

कहावत है, एक प्रजाति के पक्षी झुंड में एक साथ विचरण करते हैं। मनुष्यों में भी यही नियम लागू होता है। अंतर यह है कि मनुष्य अपने स्वभाव और गंतव्य के अनुसार संगी-साथियों का चयन स्वयं करता है। अतः किनसे घनिष्ठता बढ़ाई जाए, यह गंभीर मुद्दा है। उस नन्हीं चील की दुर्दशा पर विचार करें […]

जो, जितना देंगे वही, उसी अनुपात में वापस मिलेगा; अन्यथा आशीर्वाद/ दुआ तो दूर की ठहरी, कुछ नहीं मिलने वाला

निस्स्वार्थ सेवा का भाव संजोए रखेंगे तो मनोवांछित बिनमांगे मिलना तय है। प्रकृति का विधान है, दिए बिना कुछ नहीं मिलेगा और देने या निस्स्वार्थ सेवा की प्रवृत्ति होगी तो बिनमांगे मिलता रहेगा, सफलताएं कदम चूमेंगी। इसके विपरीत, मांगने की आदत होगी तो कुछ नहीं मिलने वाला। एक प्रसंग रेलयात्रा में सेठ के सामने गिड़गिड़ाते […]

प्रगति के लिए पुराने, अवांछित ढ़ाचे को खारिज करना होगा

  मंजिल तक पहुंचने में अड़चनें आएं तो क्या कहीं और चल पड़ेंगे? यह तो घुटने टेक देना हुआ। शायद मौजूदा व्यवस्थाएं असांदर्भिक हो गई हैं। स्पष्ट है, लक्ष्य नहीं – साधन, रास्ते और तौरतरीके बदलने होंगे। सही अर्थों में जीने के लिए एक संत ने अटपटी सी सलाह दी। क्रम से अपने मातापिता, अध्यापकों, […]

बचत बगैर गुजर नहीं, किंतु कितनी? और खर्च करें तो कहां, और कितना?

खर्च और बचत में तालमेल नहीं बैठाए रखेंगे तो घरेलू बजट अस्त-व्यस्त हो जाएगा जो जिंदगी की पटरी को डगमगा सकता है। बाजार जाते वक्त आपके पास कितने रुपए हैं और कहां रखे हैं, आप भूल भी जाएं किंतु प्रायः दुकानदार और पॉकेटमार को इसका अनुमान रहता है। ये लोग शातीर होते हैं, और आपके […]

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