जंगल के दूसरे किनारे जाती मक्खी को उसी दिशा में अग्रसर एक हाथी दिखा, वह उसके कान के ऊपर सवार हो गई। कुछ दूरी तय होने पर बोली, “हाथी भाई क्षमा करना, मेरे कारण तुम्हें थोड़ा कष्ट जरूर होगा किंतु मुझे खासी राहत मिल रही है”। हाथी ने नहीं सुना। थोड़ी देर बाद हाथी को मक्खी ने दोबारा शुक्रगुजारी जताई, हाथी फिर नहीं सुन पाया। अंत में साथ देने और सफर को खुशनुमा बनाने के लिए हाथी को आभार दिया तो हाथी को कान में गुंजन सी महसूस हुई। मक्खी अपने रास्ते चली गई। अहंकार से सराबोर व्यक्ति उस मक्खी की भांति अपनी छोटी सी दुनिया को संपूर्ण सृष्टि मान कर आजीवन भ्रम में जीता है, दूसरों के सुख-दुख, हर्षोल्लास में सहभागी नहीं होता। उसके हृदय में आनंद, उत्साह, प्रेम और शांति के भाव नहीं उपजते। संकुचित दृष्टि उसे उन्मुक्त आनंद और उल्लास से वंचित रखती है, उसका व्यवहार सहज नहीं रहता। वह नहीं समझता कि क्षमायाचना से वह गलत या दूसरा सही सिद्ध नहीं होता बल्कि आपसी संबंध सुदृढ़ होते हैं। अपनी बड़ाई सुनते वह नहीं अघाता। अपने यांत्रिक आचरण और व्यवहार से अहंकारी व्यक्ति परिजनों, सहकर्मियों व अन्य साथियों से अंतरंग संबंध नहीं बना पाता। किसी से उसे सरोकार रहता है तो उसी हद तक जहां तक निजी स्वार्थ सधते हों। वह किसी को सम्मान नहीं देता, इसीलिए सम्मान पाने का अधिकार गवां देता है। दिखावटी प्रतिष्ठा से संतुष्ट ऐसा व्यक्ति लोगों की हार्दिक दुआओं से वंचित रहता है।
जो सच्चे ज्ञानी होते हैं उन्हें अपने ज्ञान पर अहंकार नहीं होता चूंकि उन्हें अपने अज्ञान का पता रहता है। मूर्ख या अहंकारी को स्वयं में कतई नहीं, दूसरे में खूब दोष दिखते हैं। जितना तुच्छ बुद्धि उतना अधिक अहंकार। उसका नाम गूगल नहीं तो भी वह सब कुछ जानने का स्वांग करता है। कब्रिस्तान के बाहर लिखी इबारत उसके पल्ले नहीं पड़ती, “सैकड़ों दफन हैं यहां जो सोचते थे कि दुनिया उनके बिना नहीं चल सकती”। अहंकार दैविक विधान के प्रतिकूल है, आत्मघाती है, व्यक्ति के पतन का कारण है। अमेरिकी दार्शनिक वेन डायर कहते हैं, अपने हृदय में आप या तो ईश्वर को प्रतिष्ठित कर सकते हैं या अहंकार को। इससे पहले कि अहंकार आपकी खुशियां छीन ले, इसे निकाल कर जीवन को हल्का करो, अनावश्यक सामान की तरह। तब आप ऊंचा उठ सकेंगे।
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दैनिक जागरण के संपादकीय पृष्ठ के ऊर्जा स्तंभ में 30 सितंबर 2017 को प्रकाशित।
लिंक- https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-ego-16790443.html………………………………………………………………