कार्य करेंगे तो गलतियां भी होंगी। गलतियां मान लेंगे तभी सुधार होगा, अन्यथा नहीं।
कार्य संपन्न करने में कितनी भी सावधानी और निष्ठा बरतें, कदाचित त्रुटियां रह सकती हैं। इन चूकों पर पश्चाताप तो दूर, चिंता करना भी उचित नहीं। तैयार रहें, आपके किए कराए पर खूब चूकें निकाली जाएंगी, टीका-टिप्पणी की जाएंगी। इनसे बचने का एक ही तरीका है, कुछ न करें, न अपने विचार स्पष्ट करें, न ही अपनी एक स्वतंत्र पहचान बनने दें। स्वयं कुछ करने के बदले कमियां और नुक्स तलाशना और काम करने वाले को कटघरे में खड़ा करना सरल है। अधिसंख्य व्यक्ति यही करते रहते हैं।
इसका अर्थ यह नहीं कि अपनी कमियों को न देखें। अपने अवगुण या खोट को स्वीकार करना उच्च मानवीय गुण है; औसत सोच का व्यक्ति ऐसा करने में असमर्थ होता है, इसीलिए वह उन्नति की ओर प्रशस्त नहीं होता। अपने अवांछनीय या अनुचित कार्य से आंखें मूंदने का अर्थ है संशोधन के द्वार बंद कर देना। सर्वगुणसंपन्न व्यक्ति तो साक्षात देवता है। भूलचूक की स्वीकारोक्ति प्रगति की राह का पहला चरण है। इस प्रक्रिया में आप अनेक व्यक्तियों का दिल जीत लेते हैं। जिस सत्य का सामना करने के लिए तैयार नहीं, जिससे मुखातिब नहीं होना चाहते, उसे बदलेंगे कैसे? याद रहे, झुकने वाले का दर्जा सदा ऊंचा रहता है। गलती होने पर अड़े रहेंगे तो अपना ही अहित करेंगे।
जिसे अपनी अपूर्णताओं का आभास नहीं वह मूर्ख नहीं बल्कि दयनीय है, क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने अवगुणों को निराकृत नहीं कर सकेगा। जिस सीमा तक हम अपनी अपूर्णताओं, और अवांछनीय व्यवहार के प्रति सजग रहेंगे और समाधान की ओर अग्रसर रहेंगे उसी अनुपात में हम नैतिक रूप से समृद्ध होंगे। व्यावहारिक जीवन में संयमी, संयत व्यक्ति से भी भूलचूक हो जाती है। उन्नत सोच का व्यक्ति अपनी भूल को तुरंत स्वीकार कर लेगा;वह जानता है कि ऐसा करने से गलती की पुनरावृत्ति की संभावना क्षीण होगी। मध्यम सोच वाले को गलती का अहसास तो होगा, वह मन में कुढ़ेगा भी, किंतु लज्जित होने की आशंका से वह गलती को खुलेआम नहीं मानेगा। याद रहे, आपकी कार्यस्थल में सर्वोच्च पद पर बैठे अधिकारी की पेंसिल के पीछे रबड़ है। अपनी छवि के प्रति अत्यंत चौकस अधिसंख्य व्यक्ति अपने गलत कार्य या कथन की वैसी संरक्षा करेंगे जैसे सद्गुण या शील दांव पर हो।
एक खरे न्यायाधीश ने आदेश सुनाया, ‘‘हम भलीभांति समझ रहे हैं कि अमुक व्यक्ति ने अपराध किया है, किंतु साक्ष्य के अभाव में उसे रिहा किया जाता है’’। इस कथन में स्वीकारोक्ति है कि न्यायिक व्यवस्था में गंभीर त्रुटियां हैं, और यह परोक्ष टिप्पणी भी कि ऐसे नियमों के चलते न्याय नहीं मिलेगा। भूल स्वीकारने, सुधारने वाले पेशेवर या अन्य व्यक्ति को कालांतर में सुदीर्घ प्रतिष्ठा और यश मिलता है।
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इस आलेख का संक्षिप्त प्रारूप ‘स्वीकारोक्ति’ शीर्षक से 3 जून 2022, शुक्रवार को दैनिक जागरण के ऊर्जा कॉलम में प्रकाशित हुआ। अखवार के ऑनलाइन संस्ककरण का लिंक: https://m.jagran.com/spiritual/sant-saadhak-confession-accept-mistakes-with-an-open-mind-22769495.html
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उम्दा लेख! अपनी गलती का अहसास होना और उसे स्वीकार करना मानवीय गुणों में सबसे ऊपर है, और बड़प्पन की निशानी है। लेखक ने इस सूक्ष्म परंतु उत्तम गुण को उजागर कर समाज सेवा ही की है।
अति सुंदर।