जो भी है, बस यही पल है; जो करना है, अभी कर डालो

अपना स्कूली शिक्षा, उसके बाद का दौर भी फुरसतिया था। अब नर्सरी के बच्चे से ले कर रिटायर हो चुके को, पूर्णतया गृहकार्य संभालती महिलाओं सहित किसी को घड़़ी भर की फुर्सत नहीं। खुचरा ढूंढ़ते एक मिनट हो जाए तो भिखारी भी यह कहते आगे बढ़ जाएगा – “इतना टैम नहीं”। जिसने जिंदगी में लक्ष्य तय किया उसने वक्त नहीं गंवाया और वह जग जीत गया।

आपको भी कुछेक ने ठोक कर, कसम खा कर भरोसा दिलाया होगा – फलां काम अगले हफ्ते ‘‘किसी’’ दिन या अगले महीने या दो-तीन महीने में कर डालूंगा! अनाड़ी है वह जो न समझे कि वह काम कभी नहीं होने वाला। ‘‘वह’’ घड़़ी कभी नहीं आती। भविष्य हवा हवाई है; जो ठोस हाथ में है वह केवल वर्तमान है।

अगले को दी गई पते की राय उसके फायदे की हो, आसान हो, तो भी टालू व्यक्ति उस पर अमल करने की जहमत नहीं उठाएगा। क्षणभर के लिए उसे राय जचेगी तो भी आदतन लेटेलतीफे सोचेगा, ऐसी भी क्या जल्दी है, यह बारह साल में आने वाला कुंभ थोड़े है।

बहुत लंबी प्रतीत होती इस छोटी सी जिंदगी की विडंबना है, हम सदा भ्रांति में रहते हैं कि हमारे पास खूब समय है। यही सोचते सोचते हमारे अनेक जरूरी या मनचाहे कार्य लटकते जाते हैं। उपहार में बरसों पहले मिले कपड़े की सिलाई में अब-तब करते बरसों गुजर जाते हैं और कपड़ा छिज जाता है। मातापिता को उनके पुश्तैनी गांव या तीर्थ घुमाने की योजना इतनी खिंच जाती है कि तब तक वे दुनिया से कूच कर चुके होते हैं। अलाने फलाने अनेक कार्य सूची में सिमटे रह जाते हैं और एक दिन बुढ़़ापा पसर जाता है। अमेरिकी लेखक जेम्स थर्बर कहते हैं, जीवन में उतना यकायक या अप्रत्याशित कुछ नहीं घटता जितना उम्र का ढ़ल जाना। अबूझ अस्मिता है समय, किसी का कटता नहीं, किसी के पास होता नहीं।

जीवन में जो चाहा, जैसा चाहा, जितना चाहा, वह मिला या नहीं, इस पर निर्भर है – क्या खाने, सोने, दैनंदिन आवश्यक कार्य निबटाने, बिजली-पानी-टेलीफोन के बिल चुकाने से इतर आपका कोई बड़़ा लक्ष्य है? यदि हां तो क्या उसे हासिल करने के लिए आपने पर्याप्त समय दिया? याद रहे, चार कंपनियां चलाने वाले व्यक्ति को भी प्रभु ने दिन में उतने ही घंटे दिए हैं जितना उसी की एक कंपनी में कार्यरत कर्मचारी को। जिन्हें कुछ करना है वे रट नहीं लगाते, ‘‘हमारे पास समय ही कहां है?’’

मनुष्य की विशेषता है कि दैनंदिन किसी चुनींदा कार्य में सायास व्यस्त नहीं रहेंगे तो परनिंदा, ईर्ष्या, घृणा, वैमनस्य जैसे नकारात्मक भाव दिलोदिमाग में आधिपत्यकरलेंगे मुखर हो जाएंगे और हमारा जीवन अवांछनीय दिशा की ओर अग्रसर हो जाएगा। कुछ वैसे ही जैसे बगीचे की भलीभांति संवार न की जाए उसमें फालतू की खरपतवार हो जाती है।

जो भी है, बस यही पल है

भविष्य में समय ही समय होगा, ऐसा सोचने वाले को नहीं कौंधता कि कल वक्त कहां से आ जाएगा। बीमारी, आकस्मिक कार्य टपक पड़ना, जरूरी आनाजाना, कल यकायक कोई परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है। आपके पास केवल मौजूदा क्षण है।

धूपछांव सिद्धांत पर चलती जिंदगी में विघ्नकारी व्यक्तियों और दर्दनाक परिस्थितियों से आमना-सामना भी होता रहेगा। अप्रिय प्रसंगों को चित्त में धारण करेंगे तो समय बोझिल हो कर वर्तमान के तमाम सुख चैन हर लेगा। जिन अवांछित परिस्थितियों पर आपका नियंत्रण नहीं उनमें उलझ कर समय नष्ट करेंगे तो प्राकृतिक सहजता खो बैठेंगे; कुछ अभिनव, सार्थक करने का उत्साह नहीं जुुटा पाएंगे। अन्य व्यक्ति आप से सायास दूरी बना लेंगे, आप अलग-थलग पड़ जाएंगे; आप उदासीन, निराश रहने लगेंगे। समय की गति को रोकना या शिथिल करना मनुष्य के वश में नहीं है।

जीवनयात्रा के दुष्कर क्षणों को अपरिहार्य मानते हुए, जो भी वर्तमान में बेहतर उपलब्ध है उसमें रस लेने, और बिखरती परिस्थिति को सहेजने में समय लगाएं। कालचक्र एक ही स्थिति में नहीं रहता, सरकते रहना इसकी नियति है। वह समय न रहा तो यह भी नहीं रहेगा। हमारा जीवन बहुत लंबा नहीं है, अतीत की अरुचिकर परिस्थितियों की चिंता या उनके विश्लेषण में समय न गंवाएं। प्रसन्नचित्त रहने का अभ्यास निरंतर करते रहें। खिला मुस्कुराता चेहरा किसी के हृदय तक पहुंचने का अचूक साधन है।

समय की तीव्र गति के प्रति सजग प्रबुद्ध व्यक्तियों ने समय को नष्ट नहीं होने दिया। विस्मयकारी ऊंचाइयों तक वही पहुंचे जिन्होंने उस दौरान निरंतर समय का सदुपयोग अपने कौशल तराशने और परिमार्जित करने में किया जब उनके अन्य साथी रंगरेलियां मना रहे थे। निर्णय आपको लेना है, समय की अंाधी में गुम हो जाएं, या ऐसे कार्य करें जिनके संपादन से आपको और भावी पीढ़ी को सुखद परिणाम मिलेंगे।

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3 thoughts on “जो भी है, बस यही पल है; जो करना है, अभी कर डालो

  1. यह समझना बहुत बड़ी बात है कि जो भी है बस यहीं पल है। इस तथ्य को ह्रदयंगम रखते हुए समय का इष्टतम उपयोग करना चाहिए।

    1. प्रत्येक प्रश्वास जीवन तो निश्वास मृत्यु। ये जीना भी क्या जिसमें जीना (सीढियां) नहीं। क्या वास्तव में जीवन में सीढ़ियों का अस्तित्व है? जटिल मामला है। जीवन विकासवाद का अनुसरण तो नहीं करता। वह मात्र जीता है। मृत्यु पुनः जीवन पाती है। मोक्ष तो एकाध जन ही पाये यथा नचिकेता, ध्रुव। सभी देवी-देवता तो जीवन-मरण के चक्र में हैं । प्रत्येक की आयु 100 वर्ष है, यद्यपि वर्ष सभी का पृथक है।

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