पत्नियों की खुरंसः कितनी सही, कितनी नाजायज

  • बहुत सी पत्नियों की सुविचारित, दृढ़ मान्यता है कि उन सरीखा बुद्धिमान, सयाना, और उनके पति जैसा निकम्मा, वाहियात व्यक्ति दुनिया में नहीं मिलने वाला। महिलाई सोच का मुद्दा अत्यंत जटिल और अबूझ है, इसे समझने में बड़े-बड़े ज्ञानी, संत, विचारक और दार्शनिक गच्चा खा गए। इसी संबंध में हालिया मिले तीन व्हाट्सऐप मैसेज इस प्रकार थे।

वाकिया एक – पत्नी ने सौ रुपए का एक नोट पति को यह कहते दिया कि इससे आलू और टमाटर ले आना। क्षणभर बार सौ का दूसरा नोट थमाते कहा कि इससे अरहर और मूंग दाल आधा-आधा किलो ले आना! पति महोदय थोड़ी ही देर बाद वापस लौट गए तो पत्नी को हैरानी हुई, इतना जल्दी कैसे? पति ने पूछा, मैं कन्फ्यूज़ हो गया था, किस नोट से सब्जी लानी है और किससे दालें।

वाकिया दो – रिटायर्ड पति की नौकरीशुदा पत्नी अंडापसंद थी। पत्नी के आॅफिस से लौटने पर वे कभी दो उबले अंडे पेश करते तो कभी आमलेट। जब आमलेट बनता तो पत्नी धिक्कारती, इन्हें उबाल कर देना था। जब उबले अंडे मिलते तो झाड़ खाते, आमलेट क्यों नहीं बनाया? एक रोज पति ने एक अंडे का आमलेट बनाया और एक उबाल कर पेश कर दिया। पत्नी को न सूझा, आज कैसे झिड़का जाए! खैर, उसे पौइंट मिल गया था। चखते ही बिफर पड़ीं, यह क्या गुड़-गोबर कर दिया। जिस अंडे से आमलेट बनना था उसे उबाल दिया, जिसे उबालना था उसका आमलेट बना दिया।

वाकिया तीन – दो रिटायर हो चुके पतियों के बीच संवाद है। एक ने पूछा, कैसी चल रहा है। दूसरे ने बताया, खूब बढ़िया। घर के सारे काम मिलजुल कर पूरा कर देते हैं। उसे दाल और सब्जी बनाने में आलस्य आता है। वह मैं कर देता हूं। चावल मैं धो देता हूं; आटा मलने में उसकी बांह में दिक्कत होती है, तो मैं प्रेम से कर देता हूं। वह सफाईपसंद है, यह जिम्मा मैंने ले रखा है। यानी घर में अमन चैन है, ठाठ से रहते हैं दोनों जन। तुम सुनाओ, दिन कैसे गुजरते हैं। पहले का कहना था, बेइज्जती तो मेरी भी कम नहीं हो रही लेकिन अपुन के हालातों को तुम्हारी जैसी लच्छेदार भाषा में बयां करना मुझे नहीं आता।

समझदार पति घर में रोजाना की कलह से बचने का राज जानते हैं, इसीलिए पत्नी की बड़ी गल्तियों पर भी परदा डाल देते हैं, जबान सील लेते हैं, किसी को हवा नहीं लगने देते और अपनी जरा सी चूक के लिए तुरंत क्षमा मांग लेते हैं। जो ऐसा नहीं करते वे या उनकी पत्नी या दोनों अपना सर पटकते नजर आएंगे। इस प्रक्रिया में पुरुषों का जिस कदर बेड़ा गर्क हुआ, उनकी प्रतिभाएं, कौशल धरे रह गए और मानव जाति को जो क्षति हुई उसकी भरपाई कभी नहीं होने वाली। पत्नियां जो सोचें और समझें, पुरुष वर्ग कैसे उसी सोच में ढ़ल कर सुधबुध खो बैठते हैं, यह समाजशास्त्र और मनोविज्ञान के शोध का विषय है।

जिस बात पर ‘‘उस रोज’’ पत्नी ने कोहराम मचा दिया था, उसी फिजाओं और मनोस्थिति में, उसी मसले पर दूसरे दिन पूरी तरह नाॅर्मल, सहज रहने की पहेली के बारे में क्या कहेंगे? दिल इतना कमजोर कि तिलचट्टे से खौफ खा जाएं। और बहादुर इतनी कि कड़क सर्द में शादी ब्याह में बगैर स्वैटर और शाल के! महिलाओं के अजीबोगरीब व्यवहार और आचरण से बगैर बवंडर के पार हो जाना पुरुषों के लिए चुनौती है। तभी एक शायर ने कहा, ‘‘कह दो समुंदर से मुझे, जरूरत नहीं उन लहरों की … बस एक बीवी जी काफी है, जिंदगी में तूफान लाने के लिए।’’

‘‘सनक’’ की बीमारीः पुरुष भी अछूते नहीं हैं सनक के रोग से, लेकिन महिलाओं में इसका प्रकोप ज्यादा देखा गया है। पचास-साठ तक पहुंचने पर इसकी बारंबारता और भीषणता दोनों में बढ़त होती है। क्यों जब-तब सवार हो जाती है महिलाओं में सनक, इस बाबत समाज में अलग-अलग मान्यताएं हैं।एक सिद्धांत के अनुसार महिलाओं के मासिक धर्म (पीरियड्स़) का मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक संतुलन से अटूट संबध है। मासिकधर्म बेतरतीब होने से उनकी मानसिक स्थिति डोल जाती है, उनकी बूझने-समझने की सामथ्र्य जरब होती है। उम्र बढ़ने पर जब मासिक धर्म बंद हो जाता है (मीनोपौज़) तब हार्मोनल विकृति से उनके मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में बुनियादी तब्दील आती है। यह तब्दील नकारात्मक दिशा में होती है।

ऐसी महिलाओं के प्रमुख लक्षण हैं – बात-बात पर चिड़चिड़ाना; अक्सर अस्थिर या गमगीन रहना; नाहक की चिंताओं में डूबे रहना; छोटी, सामान्य घटनाओं से सहम जाना; सुधबुध खो देना। उनके भीतर अतृप्त रहने का भाव घरने लगता है, जीवन के विभिन्न आनंदों का लुत्फ उठाने में असमर्थ रहने लगती हैं। अपनी मानसिक स्थिति को दुरस्त करने के लिए वे यकायक रिक्शे या आॅटो में बैठ कर मार्किट जा सकती हैं और बहुत सी ऐसी फालतू की खरीदारी कर डालेंगी जिनकी कभी जरूरत नहीं पड़ने वाली।

महिलाओं के व्यवहार और आचरण को डांवाडोल करता एक अन्य घटक सेक्स का है। दांपत्य जीवन में सेक्स की फितरत सभी में एक समान नहीं रहती। पार्टनर को क्या, कितना सेक्स चाहिए, यह पति-पत्नी दोनों को समझना होगा। दूसरे की जरूरत क्या है, और इसी अनुसार तालमेल बैठा कर जीना होगा। यदि मेल न बैठे तो दांपत्य जीवन खतरे में पड़ सकता है। विवाहेतर संबंध बनाने वालों में अधिसंख्य वही मिलेंगे जो अपने पार्टनर से असंतुष्ट हैं। किन्हीं मामलों में पति नपुंसक या सेक्स के प्रति उदासीन रहता है, कहीं इसका उलट भी हो सकता है। उम्र के अनुसार सेक्स की आवश्यकता वास्तव में कितनी है, सफल दांपत्य के लिए यह समझना आवश्यक है।
पुरुष हो या महिला, अविवाहित हैं तो बात जुदा है, उसका सनकी होना समझ में आता है। वजह, उनके शारीरिक हार्मोनों का विकास प्रकृति के विधान के अनुसार नहीं रहा। दांपत्य में पैसे की तंगी भी सनक, फंसाद और कलह की वजह बनती है। अपने दायरे में मैं दो पत्नियों को दशकों तक नजदीकी से जानता रहा हूं जिन्होंने साठ पार होने के बाद अपने-अपने पतियों के खिलाफ न्याय के लिए कोर्ट से गुहार लगाई है। सुलह से बात सुलझाने के एवज में नाटकीय मुद्रा अख्तियार करना बुढ़ापे की शांति खराब करना है। ऐसे मूर्खतापूर्ण आचरण से सर्वाधिक क्षति बच्चों औ उनके भी बच्चों की होती है, अनुचित संदेश प्रसारित होते हैं। ऐसा ही आचरण बच्चों द्वारा दोहराए जाने की प्रबल संभावना रहती है।

गृहणी को उचित सम्मानः पत्नी का पर्याय गृहणी है; घर चलाने, बच्चों को शिक्षित करने, संस्कार देने का दारोमदार उसी पर है। पति से कितना भी मनमुटाव, झड़प लगी रहे, हर शाम उसकी बाट जोहती है। घर की चिंताओं को सदा ठीक से न समझ पाने और बाहरी दुनिया से ज्यादा संपर्क न रहने से उसका एक्सपोज़र कम हो सकता है। उसकी तनुकमिजाजी, खीज और ‘‘सनकी’’ पक्ष पर राय बनाते समय इस पर विचार करना होगा।

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दैनिक वीर अर्जुन के बिन्दास बोल स्तंभ में 2 फरवरी 2020 को प्रकाशित।
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