‘‘आज से बेहतर कुछ नहीं क्योंकि कल कभी आता नहीं और आज कभी जाता नहीं’’
फलां कार्य मैं अगले सप्ताह या फिर कभी करूंगा – ऐसे आश्वासन शेखचिल्ली खयालों की अभिव्यक्ति हैं, सुविचारित, दृढ़ सोच की नहीं। भविष्य के लिए स्थगित कार्य का संपन्न होना संदेहास्पद रहता है। अधमने संकल्प वांछित परिणाम नहीं देते। बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हृदय में प्रचंड चाहत के बाद यह गांठ बांधनी होगी कि किसी नई पहल के लिए आज से बेहतर दिन न होगा। लक्ष्य वास्तव में ठान लिया है तो इसी लमहे से सक्रिय मुद्रा अपनानी होगी। किसी ‘शुभ’ घड़ी तक टालने का अर्थ है, चयनित लक्ष्य में पुनर्विचार की गुंजाइश यानी लक्ष्य के प्रति गंभीरता नहीं है। मसलन मातापिता को तीर्थ ले जाने, बीमार परिजन को सही डॉक्टर को दिखाने या भतीजे को लैपटॉप उपहार देने के लिए विशेष अवसर की प्रतीक्षा नहीं करनी है। ऐसा न हो, चूक जाने और विलंब का मलाल आपको ताउम्र सालता रहे।
जो भी है, बस यही पल है। भविष्य के सुनहरे स्वप्नों में डूबे रहना जिसने अपनी प्रवृत्ति बना ली या जिसने अतीत की उपलब्धियों को सर्वोपरि मान लिया, वह तुरंत निबटाए जाने वाले आवश्यक कार्य में चित्त नहीं लगा सकेगा। पुस्तक के एक ही अध्याय को बार-बार पढ़ते रहेंगे तो अगले अध्याय तक कैसे पहुंचेंगे? अतीत के अप्रिय प्रसंगों से समझौता न करने से जीवन बोझिल हो जाएगा। भविष्य या अतीत के विचार हावी रहेंगे तो उस ऊर्जा का नाहक क्षरण होगा जिसका उपयोग वर्तमान के कार्य में लगाना है। अतीत में जीने वाले को सब कुछ छिनता दिखता है। इसके विपरीत वर्तमान में जीता व्यक्ति समझता है कि अतीत उसे विचलित कर सकता है। पेड़़ों के पत्ते इसलिए झड़ते हैं कि नए पत्ते आएं; सांप भी अपनी केंचली बार-बार इसीलिए छोड़़ता है। मार्सल पेग्नॉल ने कहा, अधिसंख्य व्यक्ति दुखी इसलिए रहते हैं चूंकि उन्हें अतीत उससे बेहतर दिखता है जितना वह था और भविष्य उससे कम सुलझा प्रतीत होता है जितना वह होगा। आज के कर्म हमारा भविष्य निर्मित करते हैं। मंजिल उन्हें मिली जो अकर्मण्यता के बहाने खोजने-जुटाने के बदले अविलंब हाथ में कुदाल ले कर कर्तव्य में जुट गए। आचार्य श्रीराम शर्मा के शब्दों में, ‘‘जिन्हें जीवन से प्रेम है वे एक-एक पल का सदुपयोग करते हैं’’। कोई नहीं जानता अगले क्षण आपके झोले में बेतहाशा टपक पड़े, भारी क्षति हो जाए या दुर्घटना या बीमारी झेलनी पड़े। दूरगामी परिप्रेक्ष्य में मायने इसके हैं कि आप स्वयं को आत्मिक दृष्टि से कितना समृद्ध करते हैं।
अविरल घूम रहे कालचक्र के मध्य में वर्तमान है तो दोनों आगे पीछे अतीत और भविष्य। सही मायने में वह जीता है जो वर्तमान को सत्य मानते हुए तदनुसार स्वयं को निरंतर परिमार्जित करता रहेगा। चूंकि कालप्रवाह में प्रत्येक परिस्थिति नई होती है, उससे निबटने के लिए अभिनव कौशल और तौरतरीके आवश्यक होते हैं; ये तभी सुलभ होंगे जब हम प्रतिदिन अपने नए संस्करण के रूप में प्रस्तुत होंगे। सुबह उठते ही जो मुद्रा हम धारण करते हैं उससे हमारी दिनचर्या ही नहीं, जीवनचर्या तय हो जाती है। कालांतर में यही प्रगतिशील व्यक्ति की प्रवृत्ति बन जाती है और वह स्वयं को न केवल उच्चतर, अधिक जागरूक अस्मिता के रूप में पाएगा बल्कि अपने गिर्द उत्साह और आशा का संदेश संचारित करेगा। आज का दिन उचित प्रकार से नहीं बिताएंगे तो कल के दिन संशोधन में लगे रहेंगे।
आप कैलेंडर नहीं हैं, तिथि या कैलेंडर बदलने से बेहतरी स्वतः नहीं आएगी, हमें अपने अंतकरण की टोह लेनी होगी। मौजूदा समय अभिनव परिवर्तनों के लिए विशेषकर अनुकूल है। देवों के जागरण काल में उत्तरायण की ओर मुखातिब, प्रचंड ऊर्जावान, जीवंत सूर्य का स्वागत तभी कर सकेंगे और तभी उसके सुप्रभाव से लाभान्वित होंगे जब हमारा मस्तिष्क और हृदय में रचपच गई पुरातन, अधोगामी धारणाओं से मुक्त होगा, ताकि नए के लिए स्थान बने। यह आध्यात्मिक उन्नयन और आत्मिक सुधार का अवसर है।
….. …. …. ….. ….. ….. …. …. ….. ….. ….. …. …. … ….. …. …. ….. ….. ….. …. …. ….. ….. ….. ….
नवभारत टाइम्स, 20 जनवरी, बुधवार के संपादकीय पृष्ठ (स्पीकिंग ट्री कॉलम) में ‘अतीत और भविष्य में फंसी सोच’ आज का आनंद नहीं लेने देती शीर्षक से प्रकाशित। लिंकः
….. …. …. ….. ….. ….. …. …. ….. ….. ….. …. …. … … … …. …. … … … …. …. … … … …. …. … … … …. …. … … … …
One thought on “बेहतरी तारीखें पलटने से नहीं, सोच को अग्रसर रखने से आएगी”