भला होने और भला दिखने के बीच की खाई

एक व्यक्ति वास्तव में भला है। दूसरा भला नहीं है, लेकिन भला दिखता है। आप दोनों में से किस कोटि में हैं या विकल्प मिलने पर किस कोटि में रहना चुनेंगे।समाज में अधिकांश मानसिक और अन्य समस्याएं इसीलिए हैं चूंकि स्वयं सही होने के बजाए हमारी चेष्टा रहती है कि दुनिया हमें सही समझे, हम जैसे भी हों।

समाज में अधिकांश मानसिक और अन्य समस्याएं इसीलिए हैं चूंकि हम किसी भी कार्य के औचित्य या तुष्टि के लिए उनका मुंह ताकते हैं जिन्हें वास्तव में हमारी परवाह नहीं है। बजाए हमारी चेष्टा रहती है कि दुनिया हमें सही समझे, हम जैसे भी हों। अज्ञानता में नहीं जानते कि सही होने और दिखने की राहें, और इसीलिए मंजिलें भी अलग-अलग हैं।

टेबल पर खाना प्रस्तुत कर दिया गया था। मेजबान हाथ में एक डब्बा लिए विशिष्ट मेहमान की ओर बढ़ रहे थे। उनकी थाली मे ऊपर से घी डालने को आतुर मेजमान का हाथ यकायक थम गया था चूंकि मेहमान सामने रखी कलाकृति को निहारने लगे। जैसे ही मेहमान की निगाहें वापस थाली पर टिकीं, मेजबान ने भावभीने अंदाज में कहा, ‘‘यह सौ प्रतिशत शुद्ध घी है, घर की मलाई से निर्मित, केवल आपके लिए।’’ मेहमान भांप चुका था, मंशा पौष्टिक भोजन परोसने की नहीं, विशेष सम्मान जताने की थी।

एक प्रश्न है। आप भला दिखने और भला होने में से क्या पसंद करेंगे। दूसरा, आपके बच्चे किस राह पर चलें, क्या चाहेंगे। संसार को रंगमंच मानने वाले तन, मन, धन से दूसरों के समक्ष बेहतरीन छवि प्रस्तुत करने में कसर नहीं छोड़़ेंगे, वास्तविकता उलट ही क्यों न हो। हृदय में उमड़़ते ऊहापोह, कसकन या आक्रोश के तूफान की भनक किसी को नहीं लगनी चाहिए। उनकी दृष्टि में स्वयं स्वस्थ, संयत, कुशल रहने से अधिक अहम है कि प्रतिष्ठा पर आंच न आए। बेटी विदेश में है, स्थाई नागरिकता प्राप्त है, मोटी पगार पर नामी आईटी कंपनी में कार्यरत है, यह ढ़़ोल पीटा जाएगा। दो तलाक ले चुकी है, बेहद चिड़चिड़़ी, गुस्सैल है, डिप्रेशन में रहती है, इसके उल्लेख या समाधान पर चुप्पी रहती है।

अक्सर लोग चाहते हैं, दुनिया उनके खानपान, पहनावे, प्रत्येक गतिविधि का संज्ञान ले, और वाहवाही की झड़़ी बरसे। प्रदर्शनकारी स्वभाव के पीछे दो धारणाएं हैं। पहला यह कि वे निर्विवाद रूप से सर्वश्रेष्ठ हैं। दूसरा, दुनिया उनकी शख्सियत का लोहा माने, तदनुसार उनसे पेश आए और उनके बड़प्पन का प्रचार-प्रसार करे। इसी भावना से वह मित्रों से सोशल मीडिया के जरिए मझौले बेटे की दूसरी बेटी के जन्मदिन की बधाइयां भेजने का पुरजोर आग्रह करेगा। कुुछ न सूझने पर वह सोशल मीडिया के अपने प्रोफाइल में नई पोशाक वाली फोटो डाल देगा। स्वाभाविक है, बाह्य रंगरूप, साजसज्जा पर ध्यान रहेगा तो आंतरिक संवार उपेक्षित रह सकती है।

मुखौटाप्रियों की मुश्किलें

मुखौटाप्रिय व्यक्तियों में एक वर्ग उनका है जो आरंभ में चुहल में असत्य और कल्पित प्रसंग गढ़़ने में अभ्यस्त हो जाते हैं किंतु कालांतर में निष्ठा और ईमानदारी बरतने में अक्षम हो जाते हैं। दूसरी कोटि के व्यक्ति अवसर देखते हुए सुनहली अदाएं या वृतांत प्रस्तुत करते रहते हैं। दोनों कोटि के किरदारों की समस्या है कि मुखौटे यदाकदा गिर जाने पर उनका वास्तविक घिनौना रूप जगजाहिर हो जाता है; उनके बोले, लिखे या बताए पर अन्य व्यक्ति विश्वास नहीं करते। दोहरे व्यवहार के चलते वे दीर्घकालीन प्रतिष्ठा से वंचित रहते हैं।

दूसरी ओर सत्य व निष्ठा के राही बगैर किसी लागलपेट के अपने विचार और भाव व्यक्त करता रहता है। लोकप्रियता की उत्कंठा उसे उद्वेलित नहीं करती। दूसरों की पसंद या नापसंद से वह विचलित नहीं होता, वह उसी रूप में अन्यों के समक्ष प्रस्तुत होगा जैसा वह वास्तव में है। अपने अज्ञान के प्रति सजगता उसे अहंकारी नहीं होने देती और वह दूसरों के गुणों को सम्मान देता है। वह स्वयं को श्रेष्ठ समझने की भ्रांति में नहीं जीता। वह जानता है कि छलकती अधगगरी की भांति अल्पज्ञानी प्रदर्शन के माध्यम से समाज में प्रभुत्व स्थापित करने की चेष्टा करते हैं। अपनी उच्चतर सोच के कारण वह कृत्रिम या हृदय से उत्सर्जित मुस्कान में भेद समझता है। वह आश्वस्त रहता है कि सबसे बड़ी अदालत तो हमारे भीतर है, उसे कुछ छिपाने या दूसरों के साक्ष्य की आवश्यकता नहीं पड़ती। सहज और पारदर्शी आचरण उसे अनावश्यक बोझ और तनाव से मुक्त रखते हैं। बुद्ध ने कहा था, सर्वाधिक बुद्धिमान वह है जो प्रत्यक्ष दिखते व्यवहार, घटनाओं आदि को हूबहू सत्य नहीं मानता बल्कि जिसे पार्श्व से संचालित करती शक्तियों का ज्ञान होता है।

शब्द नहीं, कार्य देखें

भारतीय संस्कृति में प्रदर्शन या महिमामंडन से दुराव नहीं था किंतु व्यक्ति या पंथ का नहीं बल्कि विचार, संस्कार और मूल्यों का। यहां तक कि अनेक आदिग्रंथों के लेखक अज्ञात हैं। घोषणाएं, वायदे, शपथपत्र झूठे हो सकते हैं; उसी भांति मुंह से निकले शब्द भ्रामक हो सकते हैं। इसीलिए सयानों ने कहा, किसी व्यक्ति को परखने के लिए उसके शब्दों पर न जाएं बल्कि उसके कार्य पर गौर फरमाएं।

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यह आलेख 27 जुलाई 2022, बुधवार के नवभारत टाइम्स (संपादकीय पेज, स्पीकिंग ट्री कॉलम) में प्रकाशित हुआ। अखवार के ऑनलाइन संस्करण का शीर्षकः “इस तरह असली और नकली चीजों की कर सकते हैं पहचान”, लिंक –

https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/speaking-tree/in-this-way-real-and-fake-things-can-be-identified/amp_articleshow/93151485.cmshttps://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/speaking-tree/in-this-way-real-and-fake-things-can-be-identified/amp_articleshow/93151485.cms

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