- एजेंडा होगा तो मौसम की दुश्वारियां कम असर करेंगी।
बेशक दिल्ली तथा उत्तरी भारत में गर्मी बेतहाशा है, उपरी तापमान 49 को छू रहा है, हवाएं मानों सुलग रही हैं। लोगों के शरीर, उससे ज्यादा उनके दिल छटपटा रहे हैं। यदि आप सोचते हैं जरूरी कार्य टाल देने और घर में दुबके रहने से आपको गर्मी से राहत मिल जाएगी और आपको चैन पड़ जाएगा, या आपके बीमार होने के आसार घट जाएंगे, तो आप भ्रांति में जी रहे हैं!
हरगिज नहीं! क्या सिखों को पगड़ी पहने रहने से कारण गरमी ज्यादा लगती है। सड़क किनारे झोपड़पट्टी में रहते बच्चे, दिन में मैदान में क्रिकेट खेलते बच्चे या इन दिनों भरी दोपहर किसी ओट में रिक्शा में अधसोए अधेड़ उम्रदार चालक लू आदि की चपेट में ज्यादा नहीं आते।
बुद्ध क्या कहते थे
समूची दुनिया को धैर्य और शांति का पाठ सिखाने वाले महात्मा बुद्ध – आज भारत सहित अनेक एशियाई व अन्य देशों में उनकी जयंती मनाई जा रही है – कहते थे, ग्रीष्म-शीत, प्रिय-अप्रिय, दिन-रात, सुख-दुख जैसी बाह्य परिस्थितियों से विचलित हो जाना मूर्खता है। बाहरी परिस्थितियों में मनुष्य उलझेगा तो उसके दैनंदिन व अन्य कार्य लटक जाएंगे।
हम भूल जाते हैं कि शीत प्रचंड का अर्थ है वसंत आने वाला है। शंकराचार्यकृत चर्पटिका स्तोत्र में उल्लेख है, ‘‘पुनरपि रजनी सायम् प्रातः, शिशिर वसन्तौ पुनरायातः …’’। परिवर्तन तो कालचक्र का नियम है। रात्रि कितनी भी स्याह हो, सुबह होगी ही। वे दिन न रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे। फिर मौजूदा मौसमी दुश्वारी का क्यों रोना धोना?
सवाल हमारी सोच का है
टंटा सोच का है। सर्दियों में नहाना हो तो ठंड बाथरूम में घुस कर झटपट पांच-सात मग पानी डालने तक रहती है। आपका भय काल्पनिक, मनगढ़ंत था। दर असल मौसम और अपनी शारीरिक सामर्थ्य के बाबत हम अनेक भ्रांतियां पाल लेते हैं और उन्हीं में जीना अपनी नियति बना लेते हैं। कोई तो गजब की शक्ति है व्यक्ति में कि 102 डिग्री बुखार में बेसुध पड़ी मां अपने दो साल के नन्हें को 99 डिग्री बुखार आ जाने पर तुरंत हरकत में आ जाती है। उसके समक्ष एक एजेंडा प्रस्तुत हो जाता है कि किसी भी तरह बच्चे को दुरस्त करना है। सवाल मन को समझाने का है, शरीर तो मन का आज्ञाकारी सेवक है।
प्रतिकूल मौसम की चिंता न करें, चिंता यह करें कि आज, कल, इस सप्ताह, इस महीने, इस साल और निकट भविष्य में आपका एजेंडा क्या है और आप उस दिशा में आप अथक कार्यरत हैं या नहीं। इस एजेंडा में आप कितना समर्पित है यह जीवन का अहम सवाल है। एजेंडा आपको गति देता है, एक सुराह पर प्रशस्त रखता है, आपके जीवन को अर्थ देता है। एजेंडा के प्रति आपकी निष्ठा आपको कर्मठ या अकर्मण्य बना देती है। कुछ ठोस करने की मंशा दिल में घर जाएगी तो गर्मी या सर्दी का मसला मसला नहीं रह जाएगा।
भांडे, कपड़ों की बेहतर सफाई
इन दिनों नल से निकलते खौलते पानी का सुख है कि बर्तन और कपड़ों की सफाई शानदार होती है। वैसे, गर्मी हो या सर्दी, नहाने के लिए गर्म पानी का उपयोग मैल हटाने और स्वास्थ्य के लिए सदा बेहतर रहता है।
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बहुत ठीक लिखा है आपने। मेरे गुरु जी श्री गदाधर जी कहते थे, मनुष्य को अपना शरीर सर्दी, गर्मी और बरसात के लिए तैयार रखना चाहिए। इस शरीर को जितना कठोर रखोगे उतना ही उचित होगा।
Excellent expression about facing challenges of climatic conditions.