ईश्वर तो आशीर्वाद दे कर आपको धन्य करने के लिए तैयार हैं, आप लेने वाले बनें।
जल की भांति ज्ञान, बुद्धि, कौशल, आशीर्वाद आदि के देन-लेन में प्रवाह ऊपर से नीचे, संपन्नता से अभाव की ओर चलता है। देवी-देवताओं से अगली सीढ़ी में दिवंगत और सिद्धजन हैं, उनका स्थान लौकिक जनों से उच्च है। उनसे कुछ या बहुत कुछ ग्रहण करने से हम अपना जीवन संवार सकते हैं बशर्ते लाभार्थी में पाने की साधारण इच्छा नहीं, तीव्र उत्कंठा हो। दूसरा उसमें प्रभु या उस व्यक्ति में अडिग विश्वास हो। गुरु-शिष्य तथा भक्ति परंपरा के पीछे यही सिद्धांत है।
देने का सिलसिला चलता रहेगा: यह समझते हुए कि जिस कुएं से जल न निकाला जाए उसका जल सूख जाता है, शीर्ष ज्ञानी, विज्ञानी, हुनरमंद, संत और सयाने जन भी अपना अर्जित ज्ञान, कौशल बल्कि सब कुछ योग्य व्यक्ति से साझा करना चाहते हैं, बल्कि उचित पात्र की बाट जोहते हैं। किंतु लाभार्थी के खरेपन से संतुष्ट हुए बिना वह बुद्धि, या आशीर्वाद नहीं देगा।
ऐसा सोचने-बोलने वाले, ‘‘भाड़ में जाए आशीर्वाद और आशीर्वाद देने वाले’’ कहीं स्वयं भाड़ मे तो नहीं जा रहे! देखा यह जाता है कि एक से एक धुरंधर वामपंथी, सेक्यूलर और हर जगह शुद्ध अपनी धकियाने वाले मौके-बेमौके आशीर्वाद के लिए बेताब रहेंगे। जैसे अपनी मर्जी से ब्याह रचाने वाले या स्वयं को झूठी दिलासा में रखते परिवार के वरिष्ठ जन भी शादी के कार्ड पर निमंत्रणकर्ता बतौर उनका नाम लिखेंगे।
जिसने ठान ली कि उसे चाहिए ही, उसे आशीर्वाद सहित सब कुछ मिलना तय है। संमृद्धि के द्वार तभी खुलते हैं जब सद्बुद्धि हो, बेहतर बनने की दहकती-फड़कती भावना हो, दाता के प्रति अगाध निष्ठा और समर्पण हो। दाता की मंशा और कार्यों पर संदेह करेंगे तो ग्राही मुद्रा में कैसे आएंगे? दाता को दिखावटी आचरण नहीं सुहाता, वह छद्म और वास्तविक में भेद समझता है।
अहंकार: लाभार्थी को अपना हाथ नीचे रखना होगा। विश्वास में कमी रहेगी या लाभार्थी को अपने ज्ञान का अहंकार होगा तो वह ग्रहण करने में अक्षम होगा। लाभार्थी के स्वभाव, व्यवहार और आचरण में विनम्रता और निश्छलता अनिवार्य है।
प्रेम की अथाह ताकत: देवी-देवताओं की भांति सिद्ध पुरुष तथा सदाशयताओं से सराबोर परिजन शक्तिपुंज होते हैं। देवों या सिद्धजनों की छोड़िए, दाता की बुद्धि, उसका ज्ञान, कौशल साधारण स्तर का हो, तो भी एक अन्य संबंध है जिसमें मजबूती से बंध कर लाभार्थी को भारी लाभ मिलता है, प्रेम का संबंध। भक्त में आराध्य के प्रति अथाह प्रेम, निष्ठा और सदाशयता हो तो भक्त के हित में प्रभु अपने नियम भी बदल डालते हैं और लाभार्थी को अभीष्ट वस्तु या कृपादृष्टि सहज प्राप्त होती है।
जीवन में जो भी सर्वाधिक मूल्यवान है उसे पाने के लिए लक्ष्य की स्पष्टता और जुझारूपन से परे परालौकिक शक्ति का संबल चाहिए। ऐसा संबल हमें देवी, पित्रों तथा उन सयाने परिजनों से मिलता है जो हमारी सोच, दिशा और कार्यों के प्रति आश्वस्त हों। हमारे हित में जिनकी सदाशयताएं दीर्घावधि तक संदेह से परे रही हों, उनका विश्वास अर्जित कर लेंगे तो वे हार्दिक आशीर्वचनों से हमें अवश्य कृतार्थ करेंगे। यह स्थिति तब निर्मित होगी जब अपने निजी सरोकार उनसे साझा करेंगे; जब हमारे स्वयं के, या संतान के वैवाहिक गठबंधन, जमीन-मकान की खरीद, नई आजीविका या कारोबार की शुरुआत या इसके विस्तार जैसे अहम मामलों में निर्णयों के पीछे देवों और सयानों का खुला समर्थन होगा। मोहल्ले की देवी भी तभी तृप्त होंगी जब घर की मां प्रसन्नचित्त रहेगी। बरई नाम अभिवादनों से आशीर्वाद नहीं टपकेगा।
सेवाभाव से तुष्ट देवी और पुरखों का आशीर्वाद निष्फल नहीं जाता। याद रहे, देवी-देवताओं, दिवंगत आत्माओं और जीवित आत्मीय स्वजनों को अपनी संततियों का सानिध्य भाता है, वे उनकी बेहतरी में साझेदारी चाहती हैं। हमें श्रद्धाभाव से अनुकूल वातावरण बना कर उनसे कृपादृष्टि का आह्वान करना है। संतुष्ट इष्टदेवों और पाक आत्माओं के पुनीत आशीर्वाद से हमारा जीवन धन्य हो जाता है।
आशीर्वाद की दिव्य शक्ति: शक्तिपुंज होते हैं दिव्यजनों के आशीर्वाद। और इन्हें अर्जित करना होता है। लेकिन पहले अगले की ऊंचाई, आपके उससे जुड़ाव की गहराई परख लें।
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इस आलेख का मूल, संक्षिप्त प्रारूप ‘कुछ पाने की प्रबल चाह’ शीर्षक से दैनिक हिन्दुस्तान, 10 अक्टूबर 2024 के संपादकीय पेज (मनसा वाचा कर्मणा कॉलम) में प्रकाशित हुआ। अखवार के ऑनलाइन संस्करण का लिंकः https://www.livehindustan.com/blog/mancha-vacha-karmna/story-hindustan-mansa-vacha-karmana-column-10-oct-2024-10842332.html
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