जन-मन पर हावी सरोकारों, मंसूबों की पड़ताल का वक्त

Bindas bol

बाजार में एक आदमी को कुछ नाटकीय करने की सूझी। वह एक खंभे के पास खड़ा हो कर, मुठ्ठी भींच कर, उसके बीच देखने की जगह बना कर आसमान में टकटकी लगाए था। चंद मिनटों में वहां भारी मजमा लग गया गया।
उसने जो साड़ी पहनी है, उसके पास जो मोबाइल या गाड़ी है, मुझे भी, उसके बेहतर न सही, टक्कर की चाहिए।
क्यों चाहिए, मुझे नहीं मालूम।
पागलनुमा भेड़चाल, हर क्षेत्र में चूहादौड़ प्रतिस्पर्धाओं में भागीदारी सभी को बीमार कर रही है।

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प्रिय जन की मौत, कारोबार में भारी क्षति, अकादमिक या नौकरी की परीक्षा में विफलता, शेयर खरीद-फरोख्त या प्रापर्टी में जबरदस्त झटका, प्यार में धोखा जैसी अप्रत्याशित, पीड़ादाई घटना एक व्यक्ति को झकझोर कर उसका जीना हराम कर देती है जबकि उसी उम्र, काठी, पेशे, पारिवारिक और आर्थिक-सामाजिक पृष्ठभूमि का दूसरा व्यक्ति कमोबेश शांत, सहज रहता है। यानी सवाल उन प्रक्रियाओं का है जो हमारे अंतःकरण में निरंतर चलती रहती हैं। हमारे दिलोदिमाग में हावी विचार निर्धारित करते हैं कि हम किस हद तक संयत या उद्वेलित, संतुष्ट या खिन्न रहेंगे। खेल मन का है।

विशेषज्ञों की राय में अच्छे मानसिक स्वास्थ्य के मायने हैं कि मन सुचारु रूप से कार्यरत रहे, सामान्य तनाव तथा प्रतिकूल परिस्थिति में भावात्मक व व्यवहारगत संतुलन डगमगाए नहीं, निजी क्षमताओं का दोहन किया जाता रहे, अन्य व्यक्तियों से तालमेल संतुष्टिदाई हो, हालात के अनुसार स्वयं को ढ़ाला जा सके। गुमसुमी, बुझदिली, हर वक्त चिड़चिड़ाते, खिसियाए रहना या बात-बात पर गुस्सा खाना जैसे आचरण भी दर्शाते हैं कि व्यक्ति मानसिक तौर पर अस्वस्थ है। संप्रति अमेरिका में 26.5 प्रतिशत वयस्क मानसिक विकृतियों से ग्रस्त हैं, इनमें से 6 प्रतिशत बहुत गंभीर हैं। अमेरिका की मानसिक स्वास्थ्य की शीर्ष संस्था नेशनल इंस्टिट्यूट आॅफ मेंटल हैल्थ के अनुसार मानसिक विकृतियां अमेरिका व अन्य राष्ट्रों में आम हो गई हैं। ब्रिटेन में प्रतिवर्ष करीब पौने तीन लाख व्यक्तियों को मानसिक विकृति के इलाज के लिए अस्पतालों में भरती होना पड़ता है और चार हजार व्यक्ति आत्महत्या करते हैं; साथ ही 80 हजार से अधिक युवा गंभीर डिप्रेशन से ग्रस्त हैं। विश्वस्त आकलनों की मानें तो समूची दुनिया में मानसिक विकृतियों में लगातार इजाफा जारी है और 2035 तक मानसिक और शारीरिक रोगियों की संख्या बराबर हो जाएगी।

तनाव, डिप्रेशन, सीज़ोफ्रेनिया आदि मानसिक विकृतियों से समाज का कोई वर्ग अछूता नहीं है। मानसिक रोगी स्वयं तो कष्ट भोगता ही है, परिजनों, समाज व राष्ट्र पर भी बोझ बनता है; एकाकी, बहिष्कृत सी निम्नस्तरीय, छोटी जिंदगी गुजारने को अभिशप्त। और जब इंतहा हो जाती है तो उसे मुक्ति के लिए जीवन को अलविदा कहने से इतर कुछ नहीं सूझता। जड़ में जाएंगे तो पाएंगे हमने सोच और मंसूबे यों बना लिए हैं कि मन संयत रहना दुष्कर हो रहा है।

पिछले साल जुलाई में दिल्लीवासियों की जुबां में बुराड़ी परिवार के सभी 11 सदस्यों द्वारा सामूहिक खुदकुशी की गहमागहमी रही। चंद दिन पूर्व, 26 सितंबर को इंदौर में सामूहिक खुदकुशी का दूसरा अध्याय रचा गया, अब का दृश्य एक रिसाॅर्ट था। इंदौर में अभिषेक सक्सेना द्वारा सपरिवार खुदकुशी के लिए नौकरी छूटने से उत्पन्न अथाह मानसिक यंत्रणा बताया गया। कहना होगा, नौकरी छूटना एक कारण बना, इस नृशंस कांड को एक विकृत सोच की उपज कहना अधिक उपयुक्त होगा। घटना को अंजाम देने के पीछे यह भी बताया जा रहा है कि सक्सेना परिवार के लिए भारी तंगी के बावजूद खुले हाथ खर्च करने की आदत से पिंड छुड़ाना भारी पड़ रहा था, ‘‘लोग क्या कहेंगे’’ की गहरी चिंता अलग। दोनों प्रकरणों में कुछ बातें सामान्य थीं। मृतक परिवारों के सभी सदस्य तन-मन से दुरस्त, सुलझे, शिक्षित, मिलनसार बताए गए। आसपड़ौस तथा परिजनों से उनका मेलजोल अच्छा और सौहार्दपूर्ण था! अपनी राय में, दोनों परिवारों में जो चल रहा था, सब उलट-पलट था, यानी दुनिया के सामने जो पेश था वह सच से कोसों दूर था। उन हालातों पर ध्यान नहीं दिया जाता रहा जिनके चलते व्यक्ति को दुनिया की सारी खुशियां और रंगबिरंगी छटाएं दिखना बंद हो जाती हैं और जिंदगी में घुप्प अंधेरा छा जाता है।

विशेषज्ञों के अनुसार स्वास्थ्य का कोई क्षेत्र इतना उपेक्षित नहीं है जितना मानसिक स्वास्थ्य। 2017 में मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम प्रभावी होने केे बावजूद बीमा कंपनियां मानसिक बीमारियों को कवर करती भी हैं तो आनाकानी के साथ। यों मानसिक विकृतियां व्यक्ति की सोच और उसके अंदुरुनी सरोकारों से ज्यादा जुड़ी हैं।

दोगलापनः मान्यताप्राप्त परिपाटी
दोगलेपन की परिपाटी को मान्यता प्रदान कर दी गई प्रतीत होती है। आप वाकई कैसे हैं, इसके मायने नहीं हैं, अहम आपकी छवि है, चुस्त-दुरस्त दिखने चाहिएं। बाज लोगों ने रिटायरमेंट के बाद बाल रंगना शुरू किया; नन्हीं बच्ची को भी सैंडल से ले कर छोटी हेयर पिन तक मैचिंग चाहिए। लोग आपके बारे में क्या सोचते, बोलते हैं, यह जरूरी है; आप एक पसंदीदा, धांसू व्यक्ति नहीं हैं तो आपका जीना व्यर्थ है। इसीलिए आपको सोशल मीडिया पर खूब सारे लाइक्स बटोरने हैं – मैं, मैं और सिर्फ मैं। वह ‘फ्रेंड’ फूटा नहीं सुहाने वाला जिसने पोते के जन्मदिन पर एडवांस में फेसबुक पर जता देने और बधाई भेजने के प्रतिवेदन के बावजूद चुप्पी साधी, ऐसों को सबक सिखाना भी बनता है। इसी कड़ी में जच्चा-बच्चा की दुरस्ती के एवज में यह बताना लाजिमी है कि डिलीवरी गंगाराम में हुई है, अहम गंगाराम से बनते स्टेटस का है, इन्क्यूबेटर में पड़े नवजात का निमोनिया तो ठीक हो ही जाएगा!
रुतबे-ठसके बढ़ाती पदवियां, इनाम, फीतियां, शील्ड वगैरह बड़े काम के हैं; कुछ की सांसों का दारोमदार इन्हीं बैसाखियों पर है। कुछेक अपने पैसे से शील्ड बनवा कर किसी के हाथ मार्फत स्वयं को सम्मानित करेंगे, ड्राइंग रूम की शोभा बढ़नी चाहिए। विश्वास न हो तो दस को भेजी चिठ्ठियों में नाम के आगे आईएएस, आईपीएस, डाक्टर या कर्नल नहीं लिख कर पुष्टि करें, दो-तीन को अस्पताल में भरती होना पड़ सकता है, बाकी सदमे का इलाज कराएंगे।

बुद्ध ने कहा था, समझदारी उन बातों को समझने में है जो बाहरी रंगरूप के परे है, अन्यथा धोखा हो सकता है। आज के मुखौटाप्रिय समाज में जो दिखे उसे सत्य मान लिया जाता है। लोक व्यवहार का तकाजा है कि बातें नपी तुली, कायदे की और दूसरों को रास आने वाली हों। एक अलिखित विधान है कि नींद उड़ाती चिंताओं और कचोटते सरोकारों की भनक किसी को न लगनी चाहिए। छोटी सी जिंदगी कुढ़कुढ़ कर जीने के लिए नहीं है। कुदरत के नाना रूप-रंग, छटाएं और अजूबे इसीलिए हैं कि इंसान मन-चित्त को प्रफुल्लित रखते हुए हर पल का लुत्फ लेते रहे तथा मानसिक विकारों से दूर रहे।

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इस आलेख का तनिक संक्षिप्त रूप दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय पृष्ठ पर मानसिक स्वास्थ्य दिवस 10 अक्टूबर 2019 को प्रकाशित।

लिंक वर्ड फाइलः https://www.dainiktribuneonline.com/2019/10/%e0%a4%a8%e0%a5%80%e0%a4%82%e0%a4%a6-%e0%a4%89%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%80-%e0%a4%9a%e0%a4%bf%e0%a4%82%e0%a4%a4%e0%a4%be%e0%a4%93%e0%a4%82-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b8%e0%a4%ae/

लिंक पीडीएफ फाइलः https://epaper.dainiktribuneonline.com/2364697/Dainik-Tribune-(Chandigarh)/DT-10-October-2019#page/8/1

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