जीवन से प्रेम है तो रंगों से लगाव लाजिमी है। जीवन में उल्लास, उमंगों और जीवंतता का संचार करते हैं रंग। रंगों के पर्व का आनंद लेने वालों से हिकारत न रखें। इनके लुत्फ से वंचित न हों।
कभी सोचा है, कैसी होगी रंगों से विहीन दुनिया? सब कुछ श्वेत-श्याम होगा तो विभिन्न वस्तुओं की पहचान कैसे सुकर होगी, और कैसे उनमें भेद करना संभव होगा? इसी के साथ हमारी तमाम सोच और संवेदनाओं में आमूल, अजीबोगरीब तब्दील आएगी, जीवन कमोबेश मशीनी हो जाएगा इसमें नीरसता तथा उकताहट पसर जाएगी। कुल मिला कर सब गड्डमगड्ड हो जाएगा। रंग ही हैं जो नीरसता को तोड़ कर जीवन में वैविध्य, प्रसन्नता, गर्मजोशी और आशा का संचार करते हैं। रंगों से लगाव के मायने हैं जीवन से प्रेम। इसीलिए जान रस्किन ने कहा, ‘‘कुदरती, सहज रूप में जीने वाले और सर्वाधिक विचारशील व्यक्ति वही हैं जिन्हें रंगों से प्रेम है।’’
प्रकृति में सब कुछ रंगीन पाया जाना अकारण नहीं है, यह एक वृहत योजना की अनुपालना में है। दुनिया के किसी भी पंथ या संप्रदाय के अनुष्ठान या त्यौहार की रस्में रंगों के बिना अदा नहीं की जातीं। हमारे देशवासी तो विशेषकर रंग प्रिय हैं। नवग्रह पूजन की पाटी, उस पर बनी ज्योमितीय आकृतियां, स्तुति कलश, मंदिर की भित्तियां, भक्तों या त्यौहार मनाते लोगों के परिधान, सभी में रंगबिरंगी छटाएं मिलेंगीं। करीब दो हजार वर्षों से चली आ रही प्रवेशद्वारों पर रचाई जाती रंगोली रंगों के माध्यम से देवी-देवताओं और आगंतुकों के प्रति स्वागती भाव की अभिव्यक्ति है। विभिन्न राज्यों में भूमि और दीवारों पर फूलों, चावल और फूलों के चूर्ण से नायाब डिज़ाइनों में महिलाओं द्वारा निर्मित रंग-बिरंगी रंगोली सदा से दर्शकों को मोहती रही है। धार्मिक संदर्भ में मान्यता है कि रंगोली के गिर्द ऊर्जा का परिक्षेत्र सृजित हो जाता है। रंगोली के आसपास सकारात्मक आभा और शांति का वातावरण निर्मित हो जाना बताया जाता है। रंगोली निर्माण में प्रयुक्त की जाने वाली प्रमुख सामग्रियां हैं, बालू, चीनी, फूलों की पंखुड़ियां और चावल का चूरमा। रंगों के प्रयोग और रंगोली को शुभ मानते हुए आंचलिक, राष्ट्रीय, तथा अंतर्राष्ट्रीय सभी आयोजनों में चाहे वे वैज्ञानिक हों, सामाजिक या सांस्कृतिक, रंगोली की सर्वमान्य परंपरा है।
रंगोली तथा अन्य साधनों में रंगीन डिज़ाइनों के नाना प्रारूप विभिन्न मानवीय संवेदनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। रंगोली की शुभ कला में गोल आकृतियां शाश्वतता का प्रतीक हैं तो बिंदु व छोटी-छोटी रेखाएं जीवनपथ में अनिवार्यतः उभरती बाधाओं का संकेत हैं। समूची आकृति का अवलोकन विश्वस्त कराता है कि विकट परिस्थितियों से उबर कर सोल्लास, सार्थक जीवन जिया जा सकता है। दीपावली, संक्रांति, तीज, नवरात्र, तुलसी व्रत आदि त्यौहारों के अलावा जन्म या वैवाहिक वर्षगांठ आदि मंगल अवसरों पर रंगोली बनाने का चलन है। रंगों में पिरोए डिज़ाइन द्वार के भीतर और आसपास नकारात्मक फिजाएं प्रविष्ट नहीं होने देते। दक्षिण भारत में मुख्यद्वार के बाहर प्रतिदिन रंगोली बनाने की परंपरा है।
खेती में बोआई, कटाई, नववर्ष मनाना आदि अवसरों पर रंगों के माध्यम से हर्षोल्लास प्रकट करने की प्रथा है। उत्तर भारत में बैसाखी और दक्षिण में ओनम इसी श्रृंखला के पर्व हैं। देश के पूर्वी अंचल में स्थानीय नव वर्ष तो असम में बिहू विशेषकर रोंगली बिहू, दक्षिणी अंचल में पुथांडू और प्रवेश द्वार पर कोलम पैटर्न, केरल में विशू समारोह उल्लेखनीय हैं।
रंगों के स्वरूप को ले कर सदा विवाद रहा है। एक मान्यता है कि रंगों का स्वयं में वजूद नहीं होता, दृष्टा अपनी समझ के अनुसार मनस्पटल पर रंगों की छवि बैठा लेता है। दूसरी ओर, वैज्ञानिक दृष्टि से प्रत्येक रंग की तरंगों की एक निश्चित लंबाई (वेवलेंथ) होती है। रंग की वास्तविक प्रकृति कैसी भी हो, यह अवश्य है कि हर चीज रंग में बेहतर दिखती है, और जैसा आस्कर वाइल्ड ने कहा, ‘‘रंग आत्मा से हजार तरीके से तादात्म्य स्थापित कर सकता है।’’
वह दिल क्या धड़केगा जो रंगों के प्रति तटस्थ रहता है। नामचीन कलाकार व लेखक वैसिली कैनडिंस्की की राय में, ‘‘रंग वह शक्ति है जो आत्मा को झकझोर कर रख देती है’’। मध्य भारत में रंगपंचमी और उत्तरी अंचलों में होली मुख्यतः रंग के त्यौहार हैं। रंगपर्व गिले शिकवे और अनायास पसर जाती आपसी गलतफहमियों और रंजिशों दूर करने का अवसर प्रदान करता है। यह समाजीकरण का सुनहरा अवसर भी है।
रंगों से खिलवाड़ आपको कितना भी फूहड़ या बचकाना लगता हो, बेहतर होगा होली की फिज़ाओं में विवेक और औचित्य को ताक पर रखते हुए तीखे रंगों, गुब्बारों, स्वादिष्ट गुजिया के आस्वादन में भागीदार बना जाए। संगीत की सुरलहरी में स्वयं को बिसार कर किरदारों के ठुमकते कदमों और उनके चेहरे पर खिले भावों में आपको भी आत्मविभोर होने का अधिकार है। इसी के साथ दिलों को जोड़ कर, चहुदिक दरकते, ढ़हते मानवीय संबंधों में नई जान फूंकने का साधन बन सकते हैं रंग। प्यार की भांति रंग किसी जात या बोली को नहीं जानते। प्रभु आपको इंद्रधनुषी जीवन के, प्रसन्नता के, दोस्ती के सभी रंग भेंट करें। यह भी स्मरण रहे, होली का रंग भले ही कुछ पलों में धुल जाए, प्यार और दोस्ती का रंग नहीं छूटना चाहिए।
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Published in Dainik Tribune on 10 February 2020. Link:Link: https://www.dainiktribuneonline.com/2020/03/%e0%a4%9c%e0%a5%80%e0%a4%b5%e0%a4%a8-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%87%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%a7%e0%a4%a8%e0%a5%81%e0%a4%b7%e0%a5%80-%e0%a4%b0%e0%a4%82%e0%a4%97%e0%a5%8b/
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अति उत्तम।