तन-मन को कुछ भी परोसते रहेंगे तो जीवन की दिशा-दशा दुरस्त नहीं रहने वाली

मशीनों के सम्मोहन में हम जीवन के आनंद भूलने लगे हैं। जहां एक ओर अंतरंग संबंध जाते रहे, एकाकीपन से ग्रस्त हो गए वहीं जीवन को ठहराव और संबल प्रदान करती आस्थाएं भी लुप्त होने के कगार पर हैं।जीवन को जीवंत, खुशनुमां और सार्थक बनाना है तो समूचा उलटफेर जरूरी होगा।

अंधाधुंध मशीनीकरण और हमारे रहन-सहन व सोच के डिजिटल तौरतरीके उन पारंपरिक मूल्यों तौर आस्थाओं को झकझोरने पर तुले हैं जो सदियों से जनजीवन को स्थायित्व और सुरक्षा प्रदान करते आए हैं। सनातनी जीवन मूल्यों और धारणाओं पर प्रश्नचिन्ह लग रहे हैं। इनसे उबरना निहायत जरूरी है किंतु दुविधाओं और आशंकाओं से सराबोर फिजाओं में सही राह का चयन, इस पर स्वयं चलना और दूसरों को वैसा बताना असाधारण सदाशयता, जुगत और सूझबूझ मांगता है। अविचार के भवसागर में स्वयं न बहने वाले उन शख्सों की आज सख्त जरूरत है जो दूसरों को भी थाम सकें।

गलाकाटू प्रतिस्पर्धा: दूसरी ओर वाहवाही बटोरने की गला-काटू होड़ है, निरंतर सुलगती अनंत लौकिक आकांक्षाएं है। कुछ की दशा उन नाविकों सरीखी है जो समुद्र में सुदूर मत्स्य कन्याओं के आकर्षक संगीत से सम्मोहित हो कर उन तक पहुंचने को बेताब हैं, वापस नहीं लौटने के लिए।

प्रकृति की अद्भुद व्यवस्था: प्रकृति के सभी कार्यकलापों में एक शानदार व्यवस्था है। यह प्रकृति का अनुशासन है। मन, चित्त या शरीर तभी तक सुचारू रूप से कार्य करेंगे जब तक ये अनुशासन और मर्यादा में बंधे रहेंगे। जैसे उचित खाद्यान्न के नियमित सेवन से पाचन प्रणाली नियत समय पर क्रियाशील हो कर खाद्यान्न को भलीभांति अवशोषित करती, और शरीर को भरपूर ऊर्जा देती है। स्वस्थ तभी रहेंगे जब मनुष्य के दोनों घटकों यानी मन और शरीर को दिए जा रहे पोषण की गुणवत्ता और मात्रा प्राकृतिक विधान के अनुकूल होगी। मांस, मदिरा, तंबाखू, अल्कोहल आदि तामसिक पदार्थों का सेवन मनुष्य को स्वस्थ नहीं रहने देता। भले ही आप नैतिकता और मांसाहार प्राप्ति में लगने वाली अथाह ऊर्जा की अनदेखी कर दें, किंतु अनेक अध्ययन पुष्टि करते हैं कि मांसाहारियों को ज्यादा बीमारियां पकड़ती हैं, जिनमें से कुछ असाध्य होती हैं; वे शाकाहारियों के समान दीर्घायु भी नहीं रहते। कहने को हमारे शरीर को मांसाहार कोटि का प्रोटीन चाहिए किंतु शरीर बड़ी सहजता से शाकाहारी प्रोटीन को मांसाहारी प्रोटीन में परिवर्तित करता रहता है। अहम विषय मांसाहार और नशीले पदार्थों के सेवन की दुष्परिणति का है।

मांसाहार और नशों की विकृतिजन्य भूमिका: मस्तिष्क की सामान्य कार्यप्रणाली को विचलित और विकृत करने तथा उसे अस्वस्थ बनाने में नशों और ड्रग्स की भूमिका में किसी भी स्तर पर संशय नहीं हैं। तो भी इनका व्यापक प्रचलन दुनियाभर में चुनौती बन चुका है। शुरुआत प्रायः अंतरंग साथियों के पुरजोर आग्रह से होती है। पहले चरण में पूर्णतया अनिच्छुक व्यक्ति भी दूसरों की संतुष्टि के लिए डिग जाता है, यहीं से उसकी दुर्गत का सूत्रपात होता है। आनंद के चालू स्तर को बरकरार रखने के लिए नशे की मात्रा बढ़ती है, बाद में इसके बिना जीना किरदार को असंभव प्रतीत होता है। इस बीच कदाचित उसे अपनी दुर्दशा पर क्षोभ भी होता है। किंतु पर्याप्त इच्छाशक्ति के अभाव में वह इस दुष्चक्र से नहीं निकल पाता।

सिने जगत की नकारात्मक भूमिका: जिस समाज में ऐसे बैठेठाले, अकर्मण्य व्यक्ति अधिक होंगे, दैनंदिन या भविष्य का ठोस एजेंडा नहीं होगा, उनमें व्यसनों और ड्रग्स के सेवन का जोखिम अधिक रहता है। ड्रग तस्करी के सरगनाओं को खासकर विकासशील देशों में नशैड़ियों की भरमार, और उन अंचलों में ड्रग तस्करी के फलने-फूलने का ज्ञान रहता है। ड्रग तस्करी का अवैध देह व्यापार से गहरा रिश्ता है। नशे के संवर्धन में सिने संसार भी पीछे नहीं। उसकी बला से नई पीढ़ी भाड़ में जाए, उसके बाजारी मंसूंबे हासिल होने चाहिएं! इसीलिए ‘झूम बराबर झूम शराबी,’ ‘शराब में नशा होता तो नाचती बोतल’ और हर फिक्र को धुएं में उड़ाने की धुनों से दर्शकों को रिझाने-बांधने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती।

समृद्धि का एक विश्वस्त पैमाना: मनुष्य की आध्यात्मिक समृद्धि का एक विश्वस्त पैमाना उसका संतुलित और संयत रहना और उसके चरित्र की दृढ़ता है। बेशक नशे में अपार आनंद है, किंतु संगीत या कला में भी उससे कम आनंद नहीं। सर्वाधिक निरीह, दीनहीन और दयनीय वह है जिसका स्वयं पर नियंत्रण नहीं है। अपने भीतरी शक्तिपुंज को जान कर प्रफुल्लित, खुशनुमां रहने की जुगत करें, इसी निमित्त आप दुनिया में आए हैं।

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इस आलेख का परिवर्तित रूप नवभारत टाइम्स के संपादकीय पेज (स्पीकिंग ट्री कॉलम) में 17 जुलाई 2024, बुधवार को ‘प्रकृति के पास है डिजिटल तकलीफों का उपाय’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। अखवार के ऑनलाइन संस्करण का लिंकः https://hindi.speakingtree.in/editorial/nature-has-a-solution-to-digital-problems/articleshow/111855220.cms

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One thought on “तन-मन को कुछ भी परोसते रहेंगे तो जीवन की दिशा-दशा दुरस्त नहीं रहने वाली

  1. This article is in-depth informative, and very useful for all age groups. I am proud that such a senior colleague of mine has enlightened me through many articles written by him. Thanks!

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