दोस्ती हो तो ऐसी

मित्रता

अंदरुनी सरोकार, उद्गार, व्यथाएं, हर्षोल्लास व करुणाएं साझा न किए जाएं तो जीवन बोझिल बल्कि असह्य हो सकता है। जिनकी कोई नहीं सुनता, उन्हें अपने कुत्ते या घोड़े से बतिया कर चैन मिलता देखा गया है। पारंपरिक रिश्तों के जरजराने से अब संबंधों का दारोमदार मुख्यतया मित्रों पर है अतः उनका सुविचारित चयन आवश्यक है। खून के रिश्तों से अधिक पुख्ता वे हैं जो वक्त पर हाथ थाम लें। संपन्नता के दौर में मित्र मंडराने लगते हैं। खरे मित्र की परख विपत्ति या कठिन दौर में होती है। जब आप सारी दुनिया को कुशल-दुरस्त होने का स्वांग करते हैं तब वह आपके दर्द को भांप जाता है। उसका आगमन कदापि बोझ नहीं होता, उसका घर कभी सुदूर नहीं होता। मित्रता का अर्थ यह नहीं कि मतभेद नहीं होंगे। मैत्री के संवाद बिंदास होते हैं उनमें लाग लपेट नहीं होता, उलाहना, फटकार हो सकती है, किंतु इन सबके मूल में सदाशयता और कल्याणभाव रहता है। आंखें मूंद कर हामी मिलाने वाले चलाऊ साथी होते हैं, मित्र नहीं। प्लूटार्क ने कहाः मुझे वह दोस्त नहीं चाहिए जो मेरी मुंडी हिलने पर अपनी मुंडी हिला दे, ऐसा मेरी परछाई बेहतर कर लेती है।

सही मित्र हमारी रग रग समझता है, उसे अपनी चिंताएं जताई नहीं जातीं। हमारे लिए जो उचित है उसमें वह सहभागी बनता है। वह झकझोरता है कि तफरीह के लिए नहीं, बीमार मां के पास जाना है, बताता है कि शर्ट का बटन टूटा है या जूते का फीता खुला है। सच्चा दोस्त वह नहीं जो लग्ज़री गाड़ी या बेशकीमती फोन खरीदने के लिए उकसाए या कर्ज दे बल्कि इनके लिए मदद देते हाथ पकड़ ले।

मित्रता की अथाह शक्ति का आधार ढ़ाई आखर का ‘‘प्यार’’ है जो वह सब करा सकता है जो किसी पावर के बूते की नहीं, इसी शक्ति के दोहन के उद्देश्य से पेशेवर, कारोबारी, सरकारें एक दूसरे का हाथ थामती हैं। पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन के अनुसार दोस्ती ही एकमात्र सीमेंट है जो पूरी दुनिया को एकजुट रख सकता है। अंदरुनी सरोकार दूसरों से साझा न करने से लोगों को अकेलापन खाए जा रहा है, डिप्रेशन, उद्विग्नता, सीज़ोफ्रेनिया जैसे मनोरोग तेजी से बढ़ रहे हैं। अमरीकी पत्रकार राबर्ट ब्राल्ट कहते हैंः ‘‘मानसिक रोगियों को मनोचिकित्सक की कम, मित्र की ज्यादा जरूरत रहती है।’’

ईमानदार मित्र जीवन का सबसे नायाब उपहार है। जिन्हें शिकायत है, आजकल खरे मित्र नहीं मिलते, उन्हें अपने भीतर झांकना होगा कि चूक कहां है। आर.डब्लू. इमर्सन की सलाह है, ‘‘पहले स्वयं किसी के अच्छे मित्र बन जाएं’’। आज के मुखौटाप्रिय समाज में मित्रों की पहचान में सूझबूझ अपनानी होगी। समय बीतने पर पता चलता है असल कौन हैं। चूंकि एक गुलाब आपकी जिंदगी को महका सकता है, सोच ऐसी होः विनम्रता सभी से, घनिष्ठता कुछ से और पूर्ण विश्वास दो-तीन पर।

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पहले दैनिक जागरण में 19 नवंबर 2017 को प्रकाशित इस आलेख का अखवार के ऑनलाइन संस्करण में लिंक है:

https://www.jagran.com/editorial/apnibaat-friendship-17059093.html

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