गजब की ताकत है प्रेम में। जो कार्य धनशक्ति, राजनैतिक शक्ति, बाहुबल के बस की नहीं वह सब प्रेम करवा सकता है। लेकिन जो प्रेम केवल प्रेयसी के लिए सुरक्षित है वह प्रेम नहीं, शुद्ध कामुकता है।
आखिर एक धुआं वह है जो मंदिर से निकलता है, दूसरा श्मशान का होता है। दोनों की तासीर में फर्क तो है ही।
ऋतु वांसतेय हो, प्रकृति यौवन पर, पेड़-पौधों में कलियां फूट रही हों और भौगोलिक फिजाएं स्नेहिल, ऐसे में दिल प्रेम की कोमल भावनाओं से सराबोर हो कर “हूं-हूं” क्यों न करे? समूची दुनिया को एक सूत्र में पिरोने में समर्थ ढ़ाई आखर के प्रेम में वह जबरदस्त ताकत है जो दुनिया के बड़े से बड़े बाहुबल, अथाह धन-संपत्ति, राजनैतिक शक्ति या रुतबेदार शख्सियत के वश की नहीं। यह प्रेम का भाव है जो समूची दुनिया को एक सूत्र में पिरो सकता है। मार्टिन लूथर ने कहा, ‘‘प्रेम एकमात्र शक्ति है जो शत्रुता को दोस्ती में तब्दील कर सकती है’’। प्रेम की जबरदस्त ताकत की न तो थाह ले सकते हैं, न इसे लफ्ज़ों में बयां कर सकते हैं।
प्रेम, श्रेणी 1
अथाह जुनून से सराबोर, एक प्रेम वह है जो सोचता है कि दुनिया उसकी मुट्ठी में है; आसमान नीचे है और वह ऊपर! यह प्रेम है जो घर-परिवार, शिष्टाचार, समाज, कानून की वर्जनाओं का विचार करने में अक्षम हो जाता है। प्रेमिका को पाने के लिए बदहवास, वह सात समुद्र लांघ लेता है, भारी से भारी जोखिम बेधड़क उठाता है। बेशक यह प्रेम उस कोटि का नहीं होता जो मां या प्रभु के लिए होता है।
प्रेम, श्रेणी 2
संतों-फकीरों को इज्जत बख्शते एक मुगल शासक के दरबार में एक जाना-माना फकीर आया। खातिरदारी के बाद फकीर ने राजा को आशीर्वाद दिया, “खुदा करे तुम इस माटी से माशूका की तरह प्रेम करो। राजा ने तुरंत प्रश्न किया, माशूका की तरह क्यों, मां की तरह क्यों नहीं?” फकीर का कहना था, ‘‘माशूका के प्रेम में आदमी दीवाना हो जाता है, मां के प्रेम में नहीं। आज अंग्रेजी हुकूमत को शिकस्त देने के लिए हमें दीवानों, सिरफिरों की जरूरत है।’’
प्रेम से अभिभूत दो जीवों में उस अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है जिसे तर्क से नहीं समझ सकते। दोनों पक्ष एक दूसरे के सानिध्य में बेहतर, खुशनुमां महसूस करते हैं। लाओत्जे ने कहा, प्रेम देने वाले में अथाह साहस पैदा हो जाता है तो पाने वाला शक्ति संपन्न।
मांस के हसीन लोथड़े पर लट्टू हो कर आवश्यक कार्यों को दरकिनार कर देना, प्रत्येक अन्य संबंध की सुधबुध खो बैठना शुद्ध कामुकता है। प्रेम का भाव है तो वह सभी पर छलकेगा, केवल प्रेमिका पर नहीं। अंतोनी सेंट एग्ज़ूपेरी के अनुसार, ‘‘एक दूसरे की आंखों में ताकते रहने का नाम प्रेम नहीं है, प्रेम का अर्थ है एक ही दिशा में दोनों के मुखातिब रहना’’। अहम वह दिशा है जिस ओर निरंतर प्रशस्त रहना जीवन को अर्थ देता है।
आराध्य के खयालों में मग्न प्रेम में सराबोर व्यक्ति को आराध्य की उपस्थिति या उसकी कल्पना भर से लगता है, जो भी है बस यही पल है। आराध्य व्यक्ति हो या प्रभु, उसमें बुराई की कल्पना को भी वह पाप समझेगा। मिस्र की बेतहाशा सुंदर रानी क्लेयोपेट्रा के मोहपाश में रोम का अग्रणी सेनानी मार्क एंटोनी को खबर दी जाती है कि शत्रु उसके देश की सरहद पर दस्तक दे चुका है, तो भी उस पर जूं नहीं रेंगती, वह कहता है, ‘‘मेरी बला से समूचा रोम टाइबर नदी में बह जाए, राजमहल की दीवारें भी ढ़ह जाएं!’’
खरा प्रेम आखिर कौन सा है?
बेशक प्रेम बिना जीवन अधूरा है। आज के दरकते पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को संवारने के लिए प्रेम की चाबी से इतर साधन नहीं है। किंतु प्रेम का स्वरूप कैसा हो यह मंथन करना होगा। उच्चतम कोटि का प्रेम केवल प्रभु के प्रति हो सकता है। मीराबाई, रहीम खान और सूरदास भगवान कृष्ण की स्तुति में इतना मग्न रहते कि उन्हें संसार में कुछ अन्य रास नहीं आता था। यही भाव तुलसीदास का भगवान राम के प्रति था। प्रभु के प्रेम में डूबे रहने से इन भक्तों को उससे बेहतर लुत्फ मिलता था जो युग्मों को एक दूसरे के सानिध्य से या व्यसनी को नशे में मिलता है। दिलचस्प यह है कि आनंद दोनों श्रेणियों के आराधकों को मिलता है। जैसा शायर ने कहा, “धुएं का रंग तो वही है, चाहे मंदिर का हो या श्मशान का”। फिर भी, दोनों की तासीर में अंतर को समझना होगा।
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तनिक संक्षिप्त रूप में यह आलेख ‘‘प्रभु के प्रेम में स्थाई आनंद की अनुभूति होती है’’ शीर्षक से 20 फरवरी 2020 के नवभारत टाइम्स में स्पीकिंग ट्री काॅलम में प्रकाशित हुआ।
अखवार के ऑनलाइन संस्करण का लिंकः https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/religious-discourse/meerabai-tulsidas-and-rahim-khan-did-only-one-thing-to-achieve-god-74264/
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बेशक प्रेम बिना जीवन अधुरा है परंतु इसका छिड़काव सभी पर करे केवल प्रेमिका पर ही नहीं इस रहस्य को उजागर कर रहे हैं लेखक.