अप्रिय, विकट या असह्य परिस्थिति में अनेक व्यक्ति स्वयं को नितांत अकेला और बेबस महसूस करते हैं। एकाकीपन की वेदना में कुछेक आवेग में जघन्य कृत्य तक कर डालते हैं हालांकि मामला सामान्य था। समझ का फेर है। जीवन में मात्र दस प्रतिशत वह होता है जिसे हम वास्तव में भोगते हैं, शेष नब्बे प्रतिशत हमारी प्रतिक्रिया या कल्पना होती है।
यह भ्रांति न रहे कि यदाकदा मनोबल को डांवाडोल या आहत करते संघर्ष और चुनौतियों से जूझते आप अकेले हैं। जब तक प्राण हैं अप्रिय, प्रतिकूल परिस्थितियों का सिलसिला नहीं थमेगा। सृष्टि की वृहत योजना में अपनी भूमिका के बाबत जितनी स्पष्टता होगी उसी स्तर तक अकेलेपन की पीड़ा से मुक्त रहेंगे।
जिसे ज्ञान है कि मनुष्य युगों-युगों से संसार के असंख्य आगंतुकों में एक है, परमात्मा का अंश है, उसका मूल स्वरूप दैविक है, और एक दिन उसे स्थूल शरीर छोड़ कर परमशक्ति में एकीकृत होना है, वह छल, दुराव और स्वार्थपरकता से दूर रहेगा। उसका आचरण और व्यवहार निश्छल, पारदर्शी और परहित में होगा; अहंकार ढ़़ह जाएगा, उसे एकाकीपन की पीड़ा नहीं होगी। अपना अस्तित्व प्रभु से पृथक समझेंगे तो समस्या दिखने पर तनावग्रस्त और चिंताकुल होंगे, उबरने का मार्ग नहीं सूझेगा। तथा ईश्वरीय शक्ति से निरंतर मिलते संबल से वंचित रहेंगे।
जिस व्यक्ति, वस्तु या अस्मिता को हृदय से अपना मान लेंगे वह आपका हो जाएगी। और जो आपका है वह आड़े वक्त पर भागेगा नहीं बल्कि सीधे या परोक्ष हस्तक्षेप से जता देगा कि आप अकेले नहीं हैं। मामूली दूरी पर उच्च गति से चल रही दो कारों के बीच कदाचित एक फड़फड़ाती प्रकट होती बाइक को याद करें। आप भौंचक्के, दो-चार सेकंड के उस खेल को समझ भी नहीं पाते कि वह बाइक वापस दूसरी लेन में अंतर्धान हो जाती है। आप सहज होते होते माथापच्ची करते हैं, आखिर बाइक सवार सुरक्षित कैसे बच निकला?
अपने के सानिध्य से, बल्कि ऐसी कल्पना भर से आपके हौसले, और आत्मविश्वास बुलंद रहते हैं। उतना ही सत्य यह है कि कोई अनायास आपका नहीं हो जाता, इसके लिए दीर्घकालीन पृष्ठभूमि निर्मित की जाती है। रक्त के संबंधी, पड़ोसी, सहपाठी या सहकर्मी होने या सामने उपस्थिति मात्र से कोई अपना नहीं हो जाता, आवश्यक नहीं वे एकाकीपन की पीड़ा घटा दें। इसके विपरीत, संबंध निश्छल और स्वार्थमुक्त भूमि पर टिके होंगे तो जीवन में एकाकीपन नहीं पसरेगा। एकाकीपन से आपको वही व्यक्ति राहत पहुंचाएंगे जिनसे आप आह्लादित करते, कचोटते सरोकार ईमानदारी से साझा करते रहे हैं। उसी की मंशाएं संदेह से परे होती हैं जो आपको आग्रह, प्रार्थना या बल से औचित्य पर अडिग रहने और दुराचार से दूर रहने को विवश कर दे। ऐसा व्यक्ति आपके गिर्द नहीं है तो समुचित जुगत बनानी होगी।
जिस वृक्ष, पत्थर, छवि या व्यक्ति के समक्ष आप श्रद्धाभाव से नतमस्तक रहते हैं, कठिन क्षणों में उसके स्मरण और आह्वान से समाधान मिल जाता है। आस्था प्रभु के प्रति हो तो बात ही निराली है। मीरा और रसखान की भांति प्रभु के प्रेम में सराबोर भक्त स्वयं को प्रभु से विलग कल्पना ही नहीं करता, उसका रोम-रोम बोलता है, प्रभु उसके हैं और वह प्रभु का है। श्रद्धेय और श्रद्धालु के बीच स्थापित हो गए तादात्म्य की प्रकृति अलौकिक होती है, इसीलिए श्रद्धालु चुनौतीपूर्ण या कठिन प्रतीत होते क्षणों में सामान्य व्यक्तियों की भांति अधीर या उद्वेलित नहीं होता। परम शक्ति की अथाह सामथ्र्य में उसकी आस्था ऐलानिया नहीं, वास्तविक होती हैं। जिसे प्रभु के सानिध्य का सौभाग्य है वह न कभी एकाकी होगा, न ही उसे दुनिया की कोई शक्ति परास्त कर सकेगी। प्रभु का अयाचित, अप्रत्याशित हस्तक्षेप उसका प्रत्येक संकट हर कर उसे उचित मार्ग पर प्रशस्त रखेगा। आवश्यक नहीं कि इस हस्तक्षेप को तर्क से बूझा जा सके।
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नवभारत टाइम्स के संपादकीय पेज पर स्पीकिंग ट्री काॅलम में 21 अक्टूबर 2020 को ‘‘भरोसे की कल्पना एकाकीपन की वेदना हर लेती है’’ शीर्षक से प्रकाशित। आनलाइन पेपर का लिंकः https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/religious-discourse/moral-education-about-life-4-86845/
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निष्ठापूर्वक लिखा गया लेख। मनुष्य को सत्य से परिचित होना चाहिए। लेखक ने इस लेख द्वारा सच्चाई उकर कर रख दी।
बड़थ्वालजी, आपके विचार और लेख मन, मस्तिष्क और शरीर को तरोताजा करते हैंं। आपकी लेखनी सबको शिक्षित करती रहे।