याद रहे, आपका जीवन उसी अनुपात में सुखद और संतुष्टिदाई रहेगा जिस हद तक आपकी मां आपसे संतुष्ट रहीं।
एक उम्रदार महिला को, दूर की देखते हुए, शुद्ध नेकनीयती से उसके बिगड़ैल पुत्र के प्रति सख्त रवैया अपनाने के सुझाव, उपाय बताया तो उसे बुरा लगा। मैं लौट आया।
मां का हृदय ठहरा। निकम्मे, अकर्मण्य, फरेबी, स्वार्थी, लोभी संतान पर भी अपना सर्वस्व न्योछावर करने को तत्पर! स्वयं 104° सें. में निढ़ाल पड़े होने पर बच्चे को 99° से. में देख कर गजब की स्फूर्ति से सराबोर हो जाती है, बच्चे की दुरस्ती के लिए। उसकी अतिरिक्त खुशी के लिए फांका भी रह लेगी।
जो संतानें मां के भाव को समझते हैं, कृतज्ञता महसूस करते हैं, जिन्होंने मां की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाया, वे सुखी रहेंगे।
एक प्रयोग करें। साठ साल से अधिक आयु के 10-15 नजदीकी दंपत्तियों को देखें, वे अपने जीवन से कितना सुखी या दुखी हैं। खुशहाल, प्रसन्नचित्त वे मिलेंगे जिन्होंने मां (और पिता) को उचित समादर दिया, उनकी जरूरतों, इच्छाओं की उपेक्षा नहीं की। इस प्रक्रिया में उन्हें मां (और पिता) की असीम शुभकामनाएं मिलीं। कहा तो यह जाता है कि मृत्यु के बाद तृप्त मां (और पिता) की आत्मा सदाचारी संतानों पर सदा कृपादृष्टि बनाए रखती हैं।
घर की मां प्रसन्न, संतुष्ट है तो मंदिर की मां स्वयं संतुष्ट हो जाएंगी, वहां जाने की जरूरत ही न रहेगी। वृद्धाश्रम में की गई उन औलादों की सेवा ढ़ोग है जिनकी मां (या पित) घर पर दुखी, व्यथित हैं, खाने-रहने के लिए दूसरों की मोहताज है।
आज मातृ दिवस पर विचार करें, अभी भी क्या किया बेहतर हो सकता है।