कार्य का दायरा सीमित होगा तो ऊर्जा में बिखराव नहीं आएगा, परिणाम भी उत्कृष्ट मिलेंगे

मन की सामर्थ्य अथाह है, औसत मानसिक स्तर का व्यक्ति भी गुल खिला सकता है। किंतु सांसारिक चिंताओं में स्वयं को उलझा कर व्यक्ति मूल्यवान ऊर्जा छितरा देता है। इसे सहेज कर किसी दिशा की ओर प्रशस्त रहे तो अपना और जग, दोनों का कल्याण कर सकता है।

स्कूलों में भौतिकी प्रयोगशाला में केंद्रगामी यानी कन्वेक्स लेंस के माध्यम से सौर्यकिरणों से कागज को जलाना सिखाया जाता है। समान रूप से सर्वत्र छितरी हुई किरणों की तुलना में संकेंद्रीकृत किरणें कई गुना अधिक ऊष्मा उत्पन्न करती हैं और कागज का तापमान बढ़़ते-बढ़़ते ज्वलनशील स्तर तक पहुंच जाता हैं। सौर्य कुकर भी निर्दिष्ट परिक्षेत्र में ऊष्मा के छितराव को अवरुद्ध करते हुए खाद्यान्न पकाने की सामर्थ्य बढ़ाने के सिद्धांत पर कार्य करता है।

सिद्धि पाने की डगंर

इसी भांति जीवन में निजी या सामूहिक स्तर पर छोटे-बड़े कार्य संपन्न करने में उपलब्ध क्षमताओं को एक दायरे में समेटना आवश्यक है, तभी उनका अधिकतम दोहन संभव होगा। अन्यथा अथक प्रयास के बावजूद बिखराव और छितराव जारी रहेगा तथा लक्ष्य तक पहुंचना दुष्कर रहेगा। ज्ञान, कौशल और जानकारी के विस्तार को एकल दिशा में परिसीमित नहीं करेंगे तो इनका लाभ न धारक को मिलेगा, न समाज को। विज्ञान, कला, चिकित्सा, या साहित्य आदि की किसी उपशाखा में पारंगत हो कर यश और वाहवाही उन्हें मिली जो विशेषज्ञता की गहराइयों में सतत कार्य करते रहे।

विभिन्न अनुष्ठानों के दौरान पूजा-अर्चना, मंत्रोच्चारण आदि से पूर्व पुरोहित आटा, हल्दी जैसी पुनीत सामग्रियों से पट्टिका या भूमि पर स्वस्तिक, ओम्, सूर्य-चंद्रमा या अन्य ज्योमितीय आकृतियां अकारण नहीं खींचता। देवी-देवताओं या परालौकिक शक्तियों के आह्वान के लिए पहले ऐसा ऊर्जायुक्त परिक्षेत्र निर्मित किया जाता है जो दैविक अस्मिताओं के अनुकूल हो, जहां वे कुछ अवधि के लिए सहजता से टिकें। मान्यता है कि नवनिर्मित परिक्षेत्र में बंध गईं परालौकिक अस्मिताएं तुष्ट हो कर जजमान तथा भक्तों को आशीर्वाद से धन्य करती हैं। अनुष्ठान पूर्ण होने के बाद सघन ऊर्जा के बंधन को निराकृत करते हैं तथा देवगण अपने ठौर पर लौटते हैं।

अनावश्यक सोच से बचें

सिद्ध धर्मगुरुओं तथा उच्च आत्मबल से संपन्न व्यक्तियों के शरीर के गिर्द ओज निर्मित होने का कारण उनका स्वयं को एक परिधि में बांधे रखना है। बड़़े संकल्प के लिए निष्ठापूर्वक तप और ध्यान के सुदीर्घ अभ्यास से उनकी समस्त ऊर्जा धनीभूत हो जाती हैं। उच्च अंतर्दृष्टि के कारण उन्हें आगामी घटनाक्रम, आगंतुक की मनोदशा, मंशा आदि का आभास हो जाता है। सिद्ध जनों की उपस्थिति मात्र वातावरण में सकारात्मक तरंगें पैदा करती हैं, उनके सानिध्य में जिज्ञासुगण आध्यात्मिक लाभ उठाते हैं। मनुष्य के जीवन में प्राणस्वरूप ऊर्जा का नाहक गतिविधियों में बिखराव न हो, इसका उपयोग ईश की प्राप्ति या सत्कार्यों के निमित्त हो, इस आशय से आदिग्रंथों में अनुशासन, निग्रह और ब्रह्मचर्य की अनुपालना से ओजस्वी बनने का आह्वान है। ब्रह्मकुमारी शिवानी कहती हैं, अनावश्यक विचारों को सायास मस्तिष्क में स्थान नहीं देंगे तो आत्मा जीवंत रहेगी, और आपको अपने गिर्द दैविक सुरक्षा कवच की अनुभूति होगी।

भगवान महावीर के उद्बोधन, ‘‘अप्प दीपो भव’’ या ओशो की संस्तुति, ‘‘पूर्ण तरह से स्वार्थी बन जाओ’’ से अभिप्राय है कि विश्व को प्रकाशित करने या लोककल्याण साधने के लिए मनुष्य को विचलनकारी सांसारिक आकर्षणों से बचना होगा। चित्त एकाग्र होगा तो मन, तन और वाणी से सशक्त बनना सहज होगा। स्वयं समर्थ होंगे तभी दूसरे के लिए सहायक बन सकेंगे।

रेखाओं का माहात्म्य

रेखाओं का संयोग मानव जीवन में रचापचा है, ज्योमितीय आकृतियां विभिन्न तरीकों से हमारे जीवन को सुव्यवस्थित रखने में सहायक होती हैं। शिक्षार्थियों के लिए वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकी तथा अन्य में अनेक सिद्धांतों को सुबोध और सरल बनाने के लिए रेखाओं, ग्राफ, रेखाचित्रों तथा ज्योमितीय आकृतियों आदि का सहारा लिया जाता है।

ईसाई मान्यता है कि प्रभु ने सृष्टि का निर्माण करने से पूर्व वृत्त बना कर सीमा निर्धारित की। जीव का सूक्ष्मतम अंश कोशिका तथा मस्तिष्क को सुरक्षा प्रदान करती बाहरी झिल्ली गोलाकार हैं। संपूर्ण शरीर त्वचा के खोल में निरापद रहता है। इत्र के परिरक्षण के लिए शीशी, और घर को सुचालन के लिए चारदिवारी चाहिए। नामी भौतिकीविद अंतोनी गैरेट की राय में ‘‘संपूर्ण ब्रह्मांड का स्वरूप शुद्ध ज्योमितीय है – यह आकाश-काल प्रखंड में विचरती, नृत्य करती शानदार संरचना है।’’

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नवभारत टाइम्स के स्पीकिंग ट्री कॉलम में 24 मई 2022, मंगलवार को ‘‘दुनिया वही साध पाता है जो अपनी सीमा में रहता है’’ शीर्षक से प्रकाशित। नवभारत टाइम्स के स्पीकिंग ट्री कॉलम में 24 मई 2022, मंगलवार को ‘‘दुनिया वही साध पाता है जो अपनी सीमा में रहता है’’ शीर्षक से प्रकाशित। अखवार के ऑनलाइन संस्करण का लिंक: https://navbharattimes.indiatimes.com/astro/spirituality/religious-discourse/moral-education-of-human-life-109738/

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