वे भाड़ में जा रहे थे। किसी सयाने ने जताया तो तपाक से बोले, ‘‘मुझे पता है! मुझे पीड़ा तब होती है जब दूसरों को यह पता चल जाए, या दूसरे सोचने लगें कि मैं भाड़ में जा रहा हूं।” सम्यता का तकाजा है, नाक कट जाए कोई बात नहीं, दूसरे को पता चल जाए तब लफड़े वाली बात है।
“लोग क्या कहेंगे” की चिंता ने बहुतेरों की नींद उड़ा रखी है। भविष्य में अपनी गुजर-बसर के लिए पैसे या ठिकाने की चिंता अनेक उम्रदारों की पीड़ा का सबब बन चुकी है। बालिग संतान से पटरी न बैठना, उसकी अनियमित आमदनी या बढ़ती उम्र में शादी के लिए तैयार न होने से अनेक माता-पिता नरक की जिंदगी बिता रहे हैं, रोज मर रहे हैं बेचारे!
उस सब की चिंता, जो होना ही नहीं है
भविष्य या अतीत में जीने वालों को नहीं कौंधता, भविष्य तो जब आएगा तब आएगा, आज से संभावित पीड़ा के बाबत चिंतित रहने का अर्थ है उस पीड़ा का ब्याज चुकाना शुरू कर देना जो मूल से कई गुना बैठता है। टॉम पेटी कहते हैं, जिन मसलों को ले कर मैं अमूनन चिंताग्रस्त वे घटित ही नहीं हुए! नाहक चिंताओं से ग्रस्त रहने वाले के आज अनिवार्यतः निबटाए जाने वाले कार्य लटक जाएंगे, भूलचूक के आसार भी बढ़ेंगे। काम के बदले चिंता करने वालों की खासी जमात है।
एक वाकिया उस पिता का है जो बालक के रिजल्ट आने से दो दिन पहले बालक की धुआंधार पिटाई करता है। बालक की दुर्दशा पर तरस खा रहे पड़ोसी के पूछने पर पिता बताता है, “कल बालक का रिज़़ल्ट आने वाला है और तब तक मैं इंतजार नहीं कर सकता क्योंकि उसका फेल होना तय है!” अनिष्ट की कल्पना में जीने वाला न केवल वर्तमान का सुखचैन खो देते हैं बल्कि अपना भविष्य चौपट कर डालता है।
नए परिवेश या परिस्थिति में असहज हो जाना मानवीय कमजोरी है। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, आगामी घटनाक्रम, या परिस्थितियां क्या रुख लेंगी इसके सटीक आकलन में शीर्ष ज्ञानी-विज्ञानी तक विफल रहे। परीक्षा-साक्षात्कार, नए कारोबार, गृह निर्माण, नए रिश्ते बनाने आदि के मामलों में यथोचित तैयारी, सुविचार और पर्याप्त सूझबूझ के बावजूद आशंकाएं उपजती हैं, यह क्षम्य है। किंतु भविष्य की असुरक्षा को ले कर एकबारगी शंकालु प्रवृत्ति बन जाने तो दैनिक कार्य डांवाडोल होने लगेंगे। यह मानसिक विकृति है और सौहार्दपूर्ण संबंध तथा सुख-शांति में बाधक है। जैसे खौलते पानी में परछाई नहीं दिखती उसी भांति चिंताकुल मन को समाधान नहीं सूझेगा।
यूं रहते हैं नकारात्मक सोच के बोल
बुरे भविष्य की कल्पना में जीता व्यक्ति प्रायः ऐलान करेगा, “अमुक कार्य हो नहीं सकता”। सही योजना बना कर मनोयोग से कार्य नहीं करने वाले को ऐसे नकारात्मक वक्तव्य देने का अधिकार नहीं है, न ही उसे कर्मरत व्यक्ति को हतोत्साहित करने की कुचेष्टा सुहाती है। अकर्मण्य व्यक्ति की धारणा रहती है, अमुक कार्य आज तक संपन्न नहीं हुआ तो अब कैसे होगा है या फलां फलां धुरंधर यह कार्य नहीं कर पाए तो मैं कैसे कर सकता हूं? इसके विपरीत कर्मठ व्यक्ति दिल में बैठा लेता है कि अमुक कार्य आज तक नहीं हुआ तो आज करना पड़ेगा, कोई अन्य नहीं कर पाया, तो उसे करना होगा। वह जानता है, कमर कस ली जाए तो कार्य अवश्य सिद्ध होगा, चूंकि समर्पित प्रयासों में सार्वभौम शक्तियां भी हाथ बंटाती हैं।
आपकी खुशी दूसरे क्यों तय करें
हमारी अधिकांश चिंताओं के मूल में संदेह रहता है, लोग हमें उससे कम तो नहीं आंकते जितना हम हैं। खासकर वे लोग जिन्हें हम सर-आंखों में रखते हैं, हमारे बारे में अच्छा न सोचें तो हम चिंतित हो जाते हैं। अपने दुख-सुख का नियंत्रण हम दूसरे को दे देते हैं। एक विचारक ने कहा, यदि आप जान जाएंगे कि दुनिया को आपकी परवाह नहीं है तो आप चिंतामुक्त हो जाएंगे।
चिंता चिता समान
चिंता हालांकि अदृश्य है, इसे चिता के समान विनाशकारी बताया गया है। इसका तार्किक आधार नहीं होता। थकान और हताशा कार्य की अधिकता या समस्या से नहीं बल्कि चिंता और खीज से होती है। इसका एक ही तोड़ है, कार्य में जुट जाएं। चिंता करने से आगामी कष्टों से निजात नहीं मिलती, आज की खुशियां जरूर छिन जाती हैं। कार्य में चित्त लगाने वाले को चिंता करने का समय नहीं मिलता। चिंता का स्वभाव है, इसे सायास नियंत्रण में नहीं रखें तो यह मन में हावी हो जाएगी। डेल कार्नेगी की सलाह है, चिंता से नींद न आए तो बिस्तर छोड़ कर कार्य में लग जाएं; चिंता छूमंतर हो जाएगी।
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यह आलेख तनिक संक्षिप्त रूप में 9 फरवरी 2023, बृहस्पतिवार के नवभारत टाइम्स (संपादकीय पेज, स्पीकिंग ट्री कॉलम) में “लोग क्या कहेंगे, यह सोच ही हमें बेचैन करती है” शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
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चिंता ही चिता की तैयारी कर देती है, बिल्कुल सही बात है। मैं बिल्कुल सहमत हूं।