‘जो राह चुनी तूने, उस पे चलते जाना रे’
सत्तर के दशक की लोकप्रिय फिल्म तपस्या का यह गाना, ‘‘जो राह चुनी तूने …’’ आप में से बहुतेरों को भाया होगा। जिस धारणा, विचार या मान्यता को मनमंदिर में प्रतिष्ठित कर देंगे उससे वापसी असंभव सी हो जाती है। एकबारगी के निर्णय के अंजाम से आप नहीं बच सकते। अतः चयन सुविचार हो।
दुविधा के क्षणों में प्रायः यह नहीं सूझता कि उपलब्ध विकल्पों में से किसका चुनाव करें। सहज, आकर्षक, तुरंत लाभ देते विकल्प को चुनना सुविधाजनक रहता है किंतु यह विरले ही हमारे दीर्घकालीन हित में होता है। कौन सा मार्ग हमारे सर्वोत्तम, दूरवर्ती हित में रहेगा, यह अहम निर्णय है चूंकि इससे आगामी जीवन की दिशा-दशा संवरती या बिगड़ती है।
संगत का खयाल रहे
जिस संगत में मन लगाएंगे, जिनके बीच उठना-बैठना रहेगा, जिनके बारे में सोचते रहेंगे, जैसा खानपान, व्यवहार और आदतें होंगी, उसी अनुसार हमारी उचित-अनुचित की धारणाएं बनेंगी। मान्यताएं और आस्थाएं भी हमारे निर्णयों को प्रभावित करती हैं। जिस विचारधारा को अपना लेंगे, जिस जीवन शैली में स्वयं को ढ़ाल लेंगे, उससे हमारी नियति तय होगी। सुविचार से चयन इसलिए भी आवश्यक है कि एक मार्ग पकड़ने के बाद बदलाव या वापसी दुष्कर होती है। गलत द्वार में प्रवेश करने पर सदा के लिए भीतर से तालाबंद रहने का जोखिम होता है। देश-काल की जिस स्थिति में हम आज संपन्न-विपन्न, संतुष्ट-हताश या प्रसन्न-दुखी हैं, वह समय-समय पर लिए गए हमारे चयनों-निर्णयों की परिणति है।
बेशक दुविधा की प्रत्येक स्थिति में विकल्प चुनने का अधिकार हमारा है; चाहें तो सामना करने के बदले घुटने टेक सकते हैं, आंखें भी मूंद सकते हैं। संवादों और व्यवहार में टीका-टिप्पणी, भर्त्सना, सराहना, कुछ भी चुन सकते हैं। किंतु निर्दिष्ट चयन के परिणाम पर हमारा नियंत्रण नहीं होता, यह कर्मफल के विधान से तय होगा। कहा गया है, ईश्वर हमारी गलती के लिए क्षमा कर देते हैं किंतु कर्मफल ढ़ील नहीं देता। हमारे सुख-दुख हमारे किए-कराए अनुसार तय होते हैं। कौशल सीखना कमोबेश कुदरती गुण है किंतु सीखने की इच्छा आपका चयन है। राहगीर का पर्स झपट लें या पुकार कर उसके गिरे धन को लौटा दें, अपनों-परायों के प्रति स्नेह, विद्वेष, ईर्ष्या, कटुता — कुछ भी संजोएं, यह आपका चयन है। ‘‘मेरे पास विकल्प नहीं था’’ ऐसा कहना सरासर झूठ है। आप वही विकल्प चुनते हैं जिसका परिणाम आपको रास आता है। मृत्यु में चयन की संभावना नहीं, वह अटल है। किंतु हम जीते कैसे हैं, यह चयन पूर्णतया हमारा है।
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इस आलेख का संक्षिप्त प्रारूप 17 अगस्त 2023, बृहस्पतिवार के दैनिक जागरण (संपादकीय पेज, ऊर्जा कॉलम) में ‘‘सही चयन’’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
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क्षेत्र बाद, जाति बाद से ग्रसित समाज?, कुंठाओं से बांटा समाज कैसे सही निर्णय लेगा और कैसे ठोस चयन कर पाएगा.
आपके लेख का कैसा असर होगा यह सोचने योग्य है.
हमारा समाज क्षेत्रवाद, जातिवाद से ग्रसित है। और फिर सर्वव्यापी कुंठाएं। ऐसे में दो-टूक निर्णय लेगा सदा सहज नहीं होता। आपके लेख का कितना असर होगा यह सोचने योग्य है।
भाई साहब, सुंदर आलेख! अंत की बात विशेषकर सटीक है: राहगीर का पर्स झपट लें या पुकार कर उसके गिरे धन को लौटा दें, अपनों-परायों के प्रति स्नेह, विद्वेष, ईर्ष्या, कटुता — कुछ भी संजोएं, यह आपका चयन है “मेरे पास विकल्प नहीं था” ऐसा कहना सरासर झूठ है। आप वही विकल्प चुनते हैं जिसका परिणाम आपको रास आता है। मृत्यु में चयन की संभावना नहीं, वह अटल है। किंतु हम जीते कैसे हैं, यह चयन पूर्णतया हमारा है।