बजती रहनी चाहिएं घंटियां, घंटे और घंटाल

यों ही नहीं बजाई जातीं मंगल अवसरों पर घंटियां

पूजा-अर्चना के अंतिम चरण में गृहणियों द्वारा बजाई जाती घंटी की आवाज या तड़के किसी मंदिर के सामने से गुजरते, आरती के साथ घंटियों के स्वर सभी को सुहाते रहे हैं। नए वर्ष के आगाज सहित सभी मांगलिक अवसरों पर घंटी बाजन (बेल रिंगिंग) की सुदीर्घ परंपरा है। हिंदू मंदिरों के अतिरिक्त गिरिजाघरों में घंटी बजाने की प्रथा है। कोई भी पुराना गिरिजाघर बगैर घंटी के नहीं मिलेगा। यह परिपाटी बरकरार है, प्रत्येक प्रार्थना से पहले घंटी बजाई जाती है। गिरिजाघर से बजता घंटा भक्तों को रविवारी सामूहिक प्रार्थना में सम्मिलित होने का आह्वान भी है। नव वर्ष में घंटे की ध्वनियों-प्रतिध्वनियों के साथ ‘‘रिंग इन द न्यू, रिंग आउट द ओल्ड’’ के ऊंचे स्वर में उच्चारण से तात्पर्य रहता है कि गए वर्ष के गैरजरूरी और अप्रिय प्रसंगों को नजरअंदाज करते हुए बेहतर खयालों, धारणाओं को दिल में बैठाया जाए।

आध्यात्मिकता से जुड़़़ाव तथा चित्त को स्वस्थ, शांत मुद्रा में रखने के साधन बतौर घंटी बजाने का चलन सभी पंथों में है। घंटियों से उत्पन्न ध्वनियों का स्वरूप सात्विक और दैविक होता है, इनके श्रवण और इनमें भावविभोर होने से मन सयंत होता है और चित्त शांत। समूचे शरीर में स्फूर्ति और मन में सकारात्मक भाव का प्रवाह होता है, नकारात्मकता दूर होती है। औसत मनुष्य के मन में रोजाना आते करीब चालीस हजार विचारों में से अधिसंख्य अवांछित, बल्कि नकारात्मक रुझान के होते हैं जो हमें सन्मार्ग से विचलित कर सकते हैं। घंटे की सशक्त, झटकेदार ध्वनि इन्हें तुरंत बहिष्कृत कर देती है, जिससे नए, सकारात्मक विचारों और सद्भावों को ग्रहण करना सुकर हो जाता है।

हिंदू, जैन व बौद्ध मंदिरों में प्रवेश करते समय द्वार पर टंगी घंटी बजाने का प्रयोजन मन-चित्त को ग्राही मुद्रा में लाना है। सभी मांगलिक कार्यों – पूजा, यज्ञ, आरती या स्तुति के आरंभ में, विशेषकर मंदिर के गर्भगृह में जाते समय घंटी बजाने में भी यही भाव है। घंटी की ध्वनि से देवी देवताओं का आह्वान किया जाता है ताकि वे भक्त की इच्छा सुनें। यह भी मान्यता है घंटी के स्वर से सुषुप्त देवी-देवता जाग्रत होते हैं। आगम परंपरा में घंटी बजाने का अर्थ यों उल्लेख हैः ‘‘मैं सात्विक व शास्त्रानुकूल शक्तियों का आह्वान करता हूं ताकि पुण्य विचार व नेक शक्तियां मेरे इर्दगिर्द विद्यमान रहें, भीतर प्रवेश करें तथा आसुरी अस्मिताएं दूर हो जाएं।

घंटी का अन्य पक्ष सुरक्षा से संबद्ध है। घंटियों से युक्त धर्म स्थल प्रायः वीराने में, कदाचित उन स्थलों के करीब होते हैं जहां जंगली जानवरों का भय रहता है। घंटे की गूंज से हिंसक जानवरों तथा अन्य हानिकारक जीव पास नहीं फटकते तथा श्रद्धालु व आगंतुक निश्चिन्त हो कर भक्ति में चित्त लगाते हैं।

ध्यान केंद्रित करने से इतर दैनंदिन गतिविधियों में घंटी बजने की अनेक भूमिकाएं हैं। सुबह उठने के लिए अलार्म स्वरूप या द्वार पर आगंतुक के पहुंचने के संकेत बतौर। बेवक्त टेलीफोन की घंटी अमूनन आशंकित करती है तो स्कूल बंद होते समय बजती घंटी छात्रों में बंदिश से मुक्ति दिलाते हुए खुशी का संचार करती है। बहुत से बुजुर्गों के कई दिनों से गमगीन, मुरझाए मुरझाए चेहरे विदेश में रच-पच गए बेटे-बेटी के टेलीफोन की घंटी से खिल उठते हैं।

घंटी की दक्षिण कोरिया में विशेष लोकप्रियता है। यहां राजधानी सियोल की विशाल बोसिंगक पैविलियन की घंटी कभी सुबह चार बजे और रात्रि दस बजे 33-33 बार बजाई जाती थी। अब वर्ष में एक बार, केवल 31 दिसंबर की मध्यरात्रि को नववर्ष के स्वागती आयोजन में एक बार बजती है जिसका लुत्फ लेने के लिए खासा जमावड़ा रहता है। कोरोना महामारी के चलते 1953 से चली आ रही इस परिपाटी में पहली बार व्यवधान आया। उस दौर में जनमानस के चित्त को राहत पहुंचाने के आशय से, निश्चित वेला पर एकसाथ प्रत्येक घर से, बाहर आ कर घंटी बजाने के प्रधानमंत्री के अभिनव आह्वान की शानदार सराहना हुई और और लोगों के दिलों में ‘फीलगुड’ का भाव प्रस्फुटित हुआ।

दुनिया के बहुत से विशाल घंटे देखनेभर हैं, कुछ ही चालू हालत में हैं। इनमें प्रमुख हैं 90 टन वजन का मिनगुन (बर्मा) में; गोटेनबा (जापान) का 36200 कि.ग्रा. का; क्रैको (पोलैंड) में वर्ष 1520 में निर्मित राष्ट्रीय दिवसों में बजाए जाने वाला 12 टन का घंटा; क्रेमलिन, मास्को (रूस) के प्रदर्शन के लिए सहेजी 160 टन की जार बेल; 2012 में लंदन ओलंपिक में चालू, लय से बजने वाला घंटा, आदि।

घंटियों-घड़ि़यालों की रचना मुख्यतया कांस्य और अपने देश में पंचधातु (लौह, तांबा, स्वर्ण, रजत और जस्ता) से की जाती है। ये घटक पंचतत्वों का द्योतक हैं जिनके योग से विश्व में सभी वस्तुओं की रचना हुई है। घंटा निर्माण में कैडमियम, निकल, क्रोमियम और मैंगनीज़़ भी प्रयुक्त होता है। इनके एक निर्दिष्ट अनुपात में बनने से घंटे से निसर्गित ध्वनि मस्तिष्क के बाएं और दाएं अंग को उचित संयोजन में रखती है। घंटी की ध्वनि नाद के समान होती है, इसी के कारण सृष्टि का प्रादुर्भाव बताया गया है। अथाह ऊर्जा से युक्त ‘ओंकार’ भी घंटी से निर्गमित ध्वनि की श्रेणी में आता है। मांगलिक अवसरों की घंटियां हमें गैरजरूरी प्रसंगों को ताक पर रखते हुए उन अभिनव मूल्यों, मान्यताओं की ओर प्रशस्त करती हैं जो हमारे, हमारे साथियों, परिजनों के दूरगामी हित में होती हैं।

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यह आलेख दैनिक आज (वाराणसी) में 12 फरवरी 2021 शुक्रवार को ‘आत्मबोध’ स्तंभ में ‘‘परंपरा का निर्वहन’’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। पेज का लिंकः https://ajhindidaily.com/wp-content/plugins/e-paper/assets/pdf/602567107b7b512%20FEB%20VNS%20PG-6%202021.pdf

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