कोरोना, अब बस इक तू ही तू है

आप कुशल हैं, स्वस्थ हैं, यह तब माना जाएगा जब आप कोरोना-मुक्त होंगे। कोरोना से इतर कोई बीमारी बीमारी नहीं मानी जाएगी।

कोरोना और उसके बिरादरों ने दस्तक क्या दी कि अन्य क्लासिकल बीमारियां खौफ से लुप्त हो गईं। मार्च 2020 से पहले की जानलेवा दिल व श्वसन की बीमारियां, टीबी, एचआईवी, वगैरह बेधड़क कहीं भी घात लगा देती थीं। कोरोना के एकछत्र राज में ये सभी पतली गली से कूच कर गईं। मरीजों, आमजन और डाक्टरों को अब एकल कोरोना से जूझना है।

कोरोना काल से पहले भी शादी-ब्याह, पार्टी-शार्टी छोड़ कर मित्रों, परिजनों से मिलने का चलन ढ़ल रहा था, बशर्ते अगले से गारंटीशुदा फायदा हो। कोरोना ने सब को तुरप के पत्ते थमा दिए – आपसे मिलने की बेताबी है, पर हाय कोरोना, मजबूर हैं। अब ई-निमंत्रणों में दोटूक लिखा जा रहा है, ‘‘आपके उपस्थित न हो सकने की विवशता का हम सम्मान करते हैं। तथापि, आपके स्नेह, आशीर्वाद और सौजन्य बिन हमारा मांगलिक कार्य संपन्न नहीं होने वाला। शगन देने में आपकी सुविधा के लिए अपना बैंक अकाउंट और पेटीएम नंबर लिख दिया है।

व्हाट्सऐप की पोस्टें आक्सीजन, बेड या प्लाज़्मा की हायतौबा और संभावित उपलब्धता ठिकानों की झूठी-सच्ची जानकारियों से लबालब हैं। “सब ठीक ठाक तो है” से मतलब होता है, बताएं कितने नयों को कोरोना ने घर दबोचा, जो भरती था उसका आक्सीजन लेवल कितना है?

इस महाव्याधि के तगमे से अपन भी धन्य हुए। हुआ यों कि अपने मुंबई रहते दामाद भी चपेट में आ गए, माडरेट किस्म का। आननफानन में बेटी और दो बच्चों का टेस्ट कराया। श्रीमतीजी का कहना था, जो नैगेटिव होंगे उनकी टहल श्रीमतीजी मकान के दूसरे हिस्से में कर लेंगी। मेरी राय थी मैं अकेला जाकर नैगेटिव लोगों को दरवाजे के बाहर से ही, अपने साथ दिल्ली ले आऊंगा। दूसरे शहर जाने के लिए पहले अपनी नैगेटिव आरटी पीसीआर आवश्यक थी, सोचा फैसला बाद में कर लेंगे। नजदीकी सरकारी डिस्पेंसरी में सैंपल दिया। अगली दोपहर पता चला, बेटी और दोनों बच्चे सभी पाज़िटिव आए हैं। हमें अपनी रिपोर्ट की जरूरत खत्म हो गई। मैं अपनी ड्यूटी सहित सभी कार्य सुचारू रूप से निभाता चला गया। सैंपल दिए बारह दिन गुजर गए, एक रोज उस डिस्पेंसरी के नजदीक से गुजर रहा था, खयाल आया, लगे हाथ रिपोर्ट ले लें, देखें कैसी होती है।

डाक्टर फरमाया, “तकलीफ क्या है?” जवाब में “कुछ नहीं” सुनने के बावजूद उसने निर्णय सुनाया, ‘‘आप पाज़िटिव है, प्रोटोकाल की अनुपालना में दो सप्ताह के लिए कोरंटाइन होना पड़ेगा।” बुखार हो तो पैरासिटामोल ले लें, अन्यथा विटामिन सी और जिंक-युक्त मल्टीविटामिन खाएं। मैं चौंका, ‘‘तब से रोज ड्यूटी बजा रहा हूं, कल एक तेरहवीं भी खाई। सैंपल दिए बारह दिन बीत गए हैं, रिपोर्ट भी उसी तारीख की है”। बाएं-दाएं देखते हुए डाक्टर धीमे से फुसफुसाया, ‘‘आप शिक्षित हैं, प्रोटोकोल मानना है, दो बचे दिनों के लिए सही, कोरंटाइन हो लें। मैं पशोपेश में था, आज भी हूं। क्या मुझे कोरोना था?

प्रभु की भांति सृष्टि के कण-कण में व्याप्त कोरोना फटीचर और एरिस्टोक्रेट में भेद नहीं करता, कुदरती तौरतरीके अपनाने और साथी-संगियों से मेलजोल बढ़ाने की प्रेरणा देता है। यह आराध्य है, इससे डरें नहीं, इसका समादर करें।

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दैनिक हिन्दुस्तान के नश्तर कॉलम में आज 14 मई 2021, शुक्रवार को प्रकाशित। अखवार का लिंकः https://www.livehindustan.com/blog/nastar/story-hindustan-nashtar-column-14-may-2021-4029685.html

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