मन से संपन्न कार्य की गुणवत्ता उच्च कोटि की होती है। ऐसे किरदारों के पास अवसर खिंचे चले आते हैं। वे रोते नहीं रहते कि उन्हें अवसर ही नहीं मिलते।
‘ऐसा होता, वैसा होता…’
‘‘मेरे पास एक करोड़ रुपए होते/ मेरी पारिवारिक हालत पुख्ता होती/ मुझे फलां कोर्स में एडमिशन मिल गया होता तो दुनिया को दिखा देता कि अपन क्या चीज हैं! ईश्वर ने मेरे साथ न्याय नहीं किया’’।
कर्मठ व्यक्ति के लिए रास्ते खुलते जाते हैं: बहाने वही बनाएगा जिसे हाथ-पांव चलाना मंजूर नहीं, बैठे-ठाले चाहिए। लिखने वाला टूटी कलम की, नाच जानने वाला फर्श टेढ़ा होने की शिकायत नहीं करता। जिसने दुनिया में कामयाबी हासिल की, उसकी राहें सीधी, सपाट नहीं रहीं, भारी प्रतिरोधों, आलोचनाओं के बावजूद वह संघर्षों से जूझा और अपने मुकाम तक पहुंचा। मनोयोग से काम में जुटे रहने की ठान लेने वाले को अवसर न मिलने का मलाल नहीं रहता। जहां दूसरों को रास्ते नहीं दिखते वहां उसके लिए दरवाजा खुल जाते हैं।
वही छोटे-बड़े कारोबारी बाजार में अवसर नहीं मिलने के बहाने बनाते हैं जिनमें काम करने का माद्दा नहीं। एक मिठाई वाला थक हार कर अपनी दुकान इसलिए बंद कर देता है कि नजदीक में एक अन्य दुकान खुलने से उसकी कमाई जाती रही। मजे की बात, इसी दुकान को दूसरा शख्स खरीदता है और धड़ल्ले से चलाता है। वह जानता है चलाने वाले हों तो अगल-बगल में चार मिठाइयों की दुकानें और भी चलेंगी। जूते की किसी कंपनी का वाकया है। कंपनी के दो प्रतिनिधियों को उस सुदूर इलाके में भेजा गया जहां कोई जूते नहीं पहनता था। कुछ दिनों में पहले प्रतिनिधि ने ऑफिस में रिपोर्ट भेजी, हमारे जूतों का यहां कोई स्कोप नहीं चूंकि यहां कोई जूते खरीदने को तैयार नहीं। दूसरे प्रतिनिधि ने अपने ऑफिस को बताया, यहां जूते का रिवाज नहीं है, हम लोगों को जूते पहनना सिखाएंगे और हमारी कंपनी मालामाल हो जाएगी। इस अभिनव पहल से हम यहां जूतों की बिक्री का इतिहास रचेंगे।
अनुकूल अवसर आने पर उम्रदार माता-पिता को तीर्थाटन कराने या अन्यत्र घुमाने की मंशा बहुेतेरी संतानें जोरशोर से जताती हैं, किंतु अधिकांश माता-पिता उस अनुकूल अवसर से पहले ही दुनिया छोड़ देते हैं। बढ़िया कपड़े पहनने और शानदार वस्तुओं को इस्तेमाल में लाने के लिए सही अवसर की बाट जोहते उन बुजुर्गों को देखें जिनकी सहेजी चीजें जर्जर हो कर कबाड़ी के सुपुर्द करनी पड़ीं।
जब ठान लें, वही घड़ी शुभ है: बड़ा काम करने के लिए दिन-वार नहीं निकाला जाता। प्रत्येक सुबह हमें नए सिरे से संवरने, अभिनव संस्करण बतौर उभरने का मौका देती है। जिस घड़ी कुछ करने की ठान लें, वही शुभ है। कुछ परिस्थितियों का जोड़तोड़ बड़े लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक अवश्य हो सकता है। किंतु अहम इन्हें पहचानना है। बतख की भांति काम की चीज बीन लेनी है।
अवसरों की छिपे रहने की प्रवृत्ति: अवसरों की खासियत है, ये सामान्य दिखती परिस्थितियों के पीछे छिपे रहते हैं। कर्मरत व्यक्ति समस्या के समक्ष घुटने टेकने के बदले उससे जूझता है, और अपनी दूरदृष्टि और लगन से ऐसी अदभुद कामयाबियां हासिल करता है कि दुनिया चौंक जाती है। वह उनसे नहीं उलझता जिनकी टोकाटोकी और आलोचना बगैर गुजर नहीं।
जो स्वयं अर्जित न किया हो, टपक कर झोली में गिर जाए उसे संभाल कर रखना और उसका भोग करना दुष्कर होता है। अवसर और सुख के साधनों के बाबत भी यही है। यह दुनिया कर्मभूमि है। हाथ की रेखाएं व्यक्ति के अतीत, वर्तमान और भविष्य का मात्र खाका प्रस्तुत करती हैं, इन रेखाओं में कर्म के रंग स्वयं भरे जाने होते हैं। इसीलिए किसी ने हथेली को भींचते हुए कहा, कब न हाथों में हमारे वे रहीं।
बेरोजगारी के दौर में उन चुनींदा व्यक्तियों को एक-दर-एक नौकरियों के ऑफर मिलते रहे, उन उद्यमियों के लिए फाइनैंसरों ने झोले खुले रखे जो अवसरों का रोना पीटने के बजाए स्वयं को तराश रहे थे। मानो फिजाएं चीख रही हों, तू हौसले रख, काम शुरू तो कर, हम अवसरों की बौछार कर देंगे।
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इस आलेख का परिवर्तित रूप नवभारत टाइम्स (संपादकीय पेज) में 18 फरवरी, मंगलवार 2025 को ‘चाहत ही नहीं, मेहनत भी चाहिए कामयाबी के लिए’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ।
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