पोषण से कहीं ज्यादा सांसों पर है सेहत का दारोमदार, जी हां! इनकी फिक्र करें

कोविड से निबटने के लिए पिछले कुछ महीनों तक क्सीजन के लिए मचे हाहाकार का बड़ा संदेश है कि जीवन पंचतत्वों में एक वायु के प्रति अपनी दृष्टि में सुधार करें।

साधु वृत्ति के अपने एक संबंधी थे, 93 वर्ष की आयु में, 2008 में चल बसे थे। आखिरी दिनों तक ओजस्वी, एकदम स्वस्थ, जिंदादिल, नीरोग और हंसमुख। उनके जीवन के बारे में सर्वाधिक अहम बात यह रही कि करीब चालीस वर्ष तक उन्होंने अन्न को नहीं छुआ। दिनभर में बस एक जून थोड़ी सी हरे पत्तों की सब्जी और मिल जाए तो दूध। आपको भी ऐसे एकाध प्रसंग की जानकारी होगी।

अब तीन ऐसे व्यक्तियों के बारे में विचार करें जिनकी उम्र, कदकाठी, जो कार्य करते हैं उसकी प्रकृति और स्वास्थ्य कमोबेश एक जैसा है। मान लीजिए उनमें से एक की रोजाना की कुल खुराक आठ रोटी है, दूसरे की बारह रोटी और तीसरे की सोलह रोटी। तीनों की नींद भी बराबर है, करीब आठ घंटे, रात दस बजे से सुबह छह बजे तक। इस गुत्थी का रहस्य आगे पढ़ने पर खुलना चाहिए।

खाद्य वैज्ञानिक और स्वास्थ्यविद एकमत हैं कि शारीरिक और मानसिक दुरस्ती के लिए भोजन आदि की एक न्यूनतम मात्रा, जिसे विशेषज्ञ आरडीए कहते हैं, अनिवार्य है। इतना ही नहीं, नित्य सेवन किए जाते भोजन आदि के प्रत्येक घटक (ग्लूकोज़, प्रोटीन, तैलीय पदार्थ, विटामिन, सूक्ष्मपोषक तत्व) की नियत मात्रा ग्रहण किए बिना स्वस्थ नहीं रहा जा सकता। साथ ही विश्राम के लिए छह से आठ घंटे की नींद जरूरी बताई गई है।

अल्प या शून्य आहार के बूते सदा जीवंत और स्वस्थ रहने के सत्य को दो तरह से समझ सकते हैं। पहला है आइंस्टीन का संहति-ऊर्जा (मास-एनर्जी) परिवर्तनशीलता का सिद्धांत। किसी वस्तु का सूक्ष्मांश भी अथाह ऊर्जा से भरपूर होता है। मसलन गेहूं के एक दाने में उतनी ऊर्जा निहित है जिससे कई दिनों तक मनुष्य का काम भलीभांति चल सकता है, हालांकि इस नियम के कुछ उपबंध हैं जैसे सेवन की जा रही वस्तु को ग्राही मुद्रा से, प्रभु का प्रसाद मान कर मनोयोग से ग्रहण करें।

दूसरा है योग शक्ति का यथोचित दोहन। भारतीय उद्गम के योगशास्त्र का मुख्य आधार श्वसन क्रियाओं का नियंत्रण और नियामन है। भगवान शिव आदियोगी थे। उनके बाद पतंजलि, और आधुनिक युग के स्वामि विवेकानंद, योगानंद आदि ने मनुष्य की समग्र बेहतरी के लिए इस चमत्कारी विद्या को सवंर्धित किया। धारणा यह थी कि इस दैविक प्रथा का उपयोग जनहित में ही किया जाएगा।

योग और श्वसन क्रियाओं की मूल धारणा है कि पंचतत्वों में एक वायु ऊर्जा का विपुल स्रोत है। वायु में देवत्व का अनुभव करेंगे तभी इसमें निहित ऊर्जा से लाभान्वित होंगे। याद रहे, रोजाना की जरूरी ऊर्जा का मात्र दस प्रतिशत ही हमे उस पोषण से मिलता है जिसे हम रोजाना ग्रहण करते हैं, शेष नब्बे प्रतिशत का स्रोत वायु में उपलब्ध वही ऑक्सीजन है जिसकी किल्लत से पिछले कुछ माहों तक कोविड से बचाव दुष्कर रहा।

निरंतर योगाभ्यास और ध्यान से साधक लंबे समय तक सांस को थाम सकता है, दीर्घायु होता है। सिद्ध योगियों के तो एक ही समय में एकाधिक स्थानों पर उपस्थित होने के प्रमाण देखे गए हैं। योग स्वस्थ, नीरोग और आनंदित रहने की प्रभावी युक्ति है।

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5 thoughts on “पोषण से कहीं ज्यादा सांसों पर है सेहत का दारोमदार, जी हां! इनकी फिक्र करें

  1. बहुत उम्दा बात कही कि सांसों का ही असली खेल हैं जिंदगी।
    (जिनका आपने उल्लेख किया वे कोई और नहीं मेरे गुरुजी थे) धन्यवाद!

  2. Diet and yoga certainly help one to lead good life. More important is the extent to which one is morally strong, abstains from telling lies, intoxication, killing or hurting someone, stealing, avoiding sexual misconduct. If we follow these principles and just watch movement of our breath for about 10 minutes or so, mind will be at peace.
    For experiencing higher levels of bliss, 10 days Residential Vipassana Course at Vipassana Centres in most cities is very effective.
    May all be happy & peaceful, free from sufferings.

  3. Your analysis nicely relates man’s instrinsic link with Nature and the Panch Tatva that a man basically is.

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