वक्त-वक्त की बात है।
बाबा रामदेव को आज योगगुरु बतौर उतना नहीं जानते जितना दन्तकान्ति, केश निखार, शैंपू, पतंजलि घी जैसे लोकप्रिय ब्रांडों के स्टार प्रचारक के रूप में।
हरियाणा में जन्मे 56 वर्षीय बाबा रामदेव (मूल नाम रामकृष्ण यादव) ने 8वीं पढ़ने के बाद भारतीय शास्त्रों, ग्रंथों और योग की शिक्षा-दीक्षा ली। आचार्य बालकृष्ण के साथ कनखल, हरिद्वार में योग मंदिर ट्रस्ट की स्थापना की; 2003 से दूरदर्शन की आस्था चैनेल और प्रशिक्षणों के माध्यम से राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योग कार्यशालाओं और प्रवचनों द्वारा योग विज्ञान का खूब प्रचार-प्रसार शुरू किया। बाबा ने बैठेठालों को सुबह पार्कों, मैदानों में पहुंचा कर उनके अंग-प्रत्यंगों और मस्तिष्क की कोशिकाओं को जीवंत, सक्रिय मोड में लाने का पुण्यकारी कार्य किया। निस्संदेह, करोड़ों लोगों ने इसका लाभ उठाया। योग की उन्होंने जो अलख जगाई उसके लिए विश्व समुदाय बाबा रामदेव का ऋणी रहेगा।
फिजां कुछ यों थी: आधुनिक (एलोपैथिक) दवाओं के बेहिसाब सेवन और कृत्रिम जीवनशैली से उत्पन्न विकारों से दुनिया ऊब रही थी। योग और प्राकृतिक तौरतरीके अपनाने का पुरजोर आह्वान करने वाले रामदेव के प्रति झुकाव स्वाभाविक था और उचित भी। योग से मन-शरीर की दुरस्ती के साथ, 2011 से ब्लैक मनी उन्मूलन और भ्रष्टाचार निरोधी आंदोलन में उनकी ठोस भूमिका रही; 2006 से पतंजलि योगपीठ के कार्यक्रमों में तेजी आई।
बदलती सोच का बाबा रामदेव को लाभ मिलना भी शुरु हुआ। जन लोकप्रियता के पैमाने पर उनका स्थान शीर्ष था। लोक मानस में उनके लिए अपार आस्था और श्रद्धा उमड़ती थी। बाबा के जन संबोधनों में भारतीयों को अपनी सुदृढ़, समृद्ध जड़ों से विलग न होने, और स्वदेशी मूल्यों की ओर लौटने का जोरदार आह्वान रहता। स्वदेशी भाव से ओतप्रोत व्यक्तियों को ये बातें खूब रास आईं। तब मैंने अपने कॉलमों तथा आलेखों में लिखा था कि विश्व समुदाय को जितना स्वास्थ्य लाभ बाबा रामदेव ने दिया उतना समस्त चिकित्सा समुदाय ने क्या ही दिया होगा। प्रसिद्धि का डंका बज रहा था। भारतीय सांसद ही नहीं, ब्रिटिश संसद के सदस्य भी मनोयोग से उनके योग प्रशिक्षणों में भागीदार बने।
गतिविधियों में यू-टर्न
यहां तक सब ठीक था। बाबा रामदेव यदि अपनी गतिविधियां योग, साधना, सांस्कृतिक संरक्षण और हिंदुत्व के पुनर्जागरण तक सीमित रखते तो उनकी छवि निस्स्वार्थ, लोकहितों के योद्धा की होती। उन्हें ईश्वर तुल्य समझा जाता, पूजा स्थल पर अन्य देवी देवताओं की भांति उनकी स्तुति, प्रार्थना होती। उन्हें सर्वसम्मति से आध्यात्मिक विश्व गुरु के रूप में पूजा जाता। नियति क़ो यह स्वीकार्य न था।
पतंजलि संस्थान की गतिविधियों का रुझान बाजारी होने लगा। कुछेक की धारणा है बाबा का मूल, दूरगामी लक्ष्य व्यापारिक ही था। योग तो एक हथियार था, पहले करोड़ों ग्राहकों के दिलों तक पैठ जमाने के बाद उनकी जेबें झटकने का। चंद बरसों मे पतंजलि बैनर के उत्पाद मार्किट में छाने लगे। देश की शीर्ष एफएमसीजी कंपनी हिन्दुस्तान लीवर को झकझोरते हुए पतंजलि का वर्तमान टर्नोवर पच्चीस हजार करोड़ पहुंच गया है।
शातिर मार्किटिंग प्रोफेशनल की तर्ज पर पतंजलि उत्पादों की बिक्री बढ़ाने में बाबा रामदेव ने सभी हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए, भले ही अपने पूर्व एजेंडा को ताक पर रखना पड़े। कुछ उदाहरण हैं।
बार बार यह ऐलान कि पतंजलि या दिव्य योग की आइटमें दूसरों के मुकाबले बेहतर क्वालिटी की, और सस्ती हैं। दूसरों की आइटमों को व्यापक खोज किए बिना घटिया और महंगा कहना सरासर झूठ है।
कहने को विज्ञापन, प्रचार, बिचैलियों आदि पर खर्च न किए जाने और लागत घटने से पतंजलि आइटमों का खुदरा मूल्य अन्य ब्रांडों से कम होना चाहिए, किंतु इस बचत का लाभ ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया जाता। पतंजलि प्रोडक्ट दूसरे ब्रांडों के मुकाबले सस्ते नहीं हैं।
ग्राहकों की पसंद भांपते हुए मैगी, सौंदर्य प्रसाधन जैसी वे आइटमें जोड़ दी गईं जिनके प्रयोग की सिद्धांततः भर्त्सना की जाती थी। नाम तक मिलते जुलते रखे। संभव है, पान मसाला, परफ्यूम, महिलाओं के लिए गर्भ निरोधक गोलियां व अन्य साधन तथा पुरुषों के लिए उनके मतलब की आइटमें आ जाएं। लड़का पैदा न होने से दुखी परिवारों के लिए बहुत पहले से पुत्रजीवक बीज और शिवलिंगी बीज पहले ही उपलब्ध हैं, इन्हें अमेजन या अन्य साइटों से भी मंगा सकते हैं। क्या यह सब उनके प्रतिपादित मूल्यों के विरुद्ध नहीं? हास्य कवि सुरेन्द्र शर्मा द्वारा बाबा रामदेव को पूछे प्रश्न, “यदि आपके योग से बीमारियां और विकृतियां दूर होती हैं तो दवाएं क्यों बेचते हो?”, बाबा मौन साध लेते हैं।
हलाल-प्रमाणीकृत उत्पादों का घिनौना सच: विश्व के करीब 54 मुस्लिम देश हलाल-प्रमाणित प्रोडक्ट ही खरीदेंगे, अन्य हरगिज नहीं। इन देशों में पतंजलि उत्पादों की सप्लाई न रुके, इसलिए पतंजलि के उत्पाद हलाल-प्रमाणित हैं, इस प्रश्न पर वे चुप्पी साध लेते हैं; जिन्होंने कई बार लिखित में या ई-मेल से पूछा, वे ऐसा बताते हैं। सर्वविदित है, हलाल प्रमाणीकरण संस्थाएं खुलेआम जेहादियों को कानूनी मदद देती हैं। अपने उत्पाद हलाल-प्रमाणीकृत कराने का सीधा अर्थ है हिंदू और हिंदू विरोधी तत्वों को समर्थन। स्पष्ट है, मैक्डोनाल्ड, केएफसी आदि कंपनियों की तर्ज पर पतंजलि समूह को हिंदुओं व हिंदुत्व पर कुठाराघात स्वीकार्य है बशर्ते कमाई का सिलसिला सही चलता रहता है।
ऐसी कंपनियों और इनके उत्पादों से कैसे पेश आना है, यह बताने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए।
पतंजलि ब्रांडों के निष्ठावान ग्राहकों का मोहभंग हो रहा है और उनका विकल्पों की ओर मुखातिब होना स्वाभाविक है।
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अच्छा लेख। हलाल प्रमाणपत्र पर काफी जोर है। कोई विशेष कारण?
उत्कृष्ट लेख।